कीमत
अच्छा है हीरा अपनी कीमत नहीं जानता,
वरना खुद निकल पड़ता बाज़ार में अपने को बेचने।
अच्छा है बच्चा अपनी मासूमियत पर गुमान नहीं करता,
वरना निकल पड़ता चालाकों की टोलियों का राजा बनने।
अच्छा है चांदनी चांद पर मिटती नहीं,
वरना करने लगता गुरूर वह अपने सौंदर्य पर।
अच्छा है सूरज अपनी तपन पर घमंड नहीं करता,
वरना निकल पड़ता सब कुछ राख करने।
एक आदमी है, जब अपनी कीमत जान जाता है,
तो उसका भाव बढ़ जाता है,
उसका कद बढ़ जाता है,
उसका रुतबा बढ़ जाता है,
लेकिन उसकी मनुष्यता घट जाती है।