कीमत
कोई पूंछ रहा है
मेरी जिंदगी की कीमत
क्यों पल नही गुजरता
जो पल मे गुजर जाती है
दर्द का दायरा खुद तक
कोई हमदम न रहा
इकक्ठे हुये तमाम जिगरी
खुशियां बिखरी जाती है
बुरे के साथ बैठ के
साफ नियत के संग
बचाया खुद को खूब
छवि दागी हो जाती है
जब कुछ न था
तो सब्र न हुआ
जब सब कुछ है
तो कद्र न की जाती है
क्या करोगे पूरा
सब अधूरा सा है
मुक्कमल क्या है
जो शिकायत की जाती है
बुद्धि मे त्रुटि
बहक रहे हों कदम
सही-गलत का नहीं अंदाजा
बहस नही की जाती है
ये दोस्त तू ही लगा ले
मेरी जिंदगी की कीमत
मुझ से तो
न लगायी जाती है
स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
@अश्वनी कुमार जायसवाल