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23 Jun 2024 · 1 min read

किस बात की चिंता

बदलते हैं अगर दिन -रात तो किस बात की चिंता,
विलग चकवे से होकर रात में चकवी कहीं बैठी,
मिली जब विरह की सौगात तो किस बात की चिंता,
दिवस के सुख भरे एहसास की ले आस जब बैठा।

उसे जब मिली लंबी रात तो किस बात की चिंता,
सरित की घट रही धारा किनारा पास आता है,
सतत गतिमान जीवन नाव तो किस बात की चिंता,
महाभारत के इस संग्राम का विश्राम है माधव ।

अगर कोहराम में हो राम तो किस बात की चिंता,
विधाता ने अगर बाजी पलट दी तो विवश हैं हम,
तपन में कैद है बरसात तो किस बात की चिंता,
बदलते हैं अगर दिन रात तो किस बात की चिंता।

अनामिका तिवारी “अन्नपूर्णा”✍️✍️

Language: Hindi
1 Like · 76 Views
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