किस बात का रोना
किस बात का रोना
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किस बात का है रोना
होगा वहीं ,जो है होना
चंद दिनों की मेहमान
जिंदगी है ये खिलौना
फूलों सी हसीं दुनिया
काँटों का हैं बिछौना
बदहवास हुए हैं सारे
जैसे किया जादू टोना
बारिश का मौसम है
मेघों की गर्जन होना
खुशियों के पल ढूंढों
गम कब तक है ढोना
मनसीरत जाग जाओ
उठ जाओ,क्यों सोना
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)