“किस बात का गुमान”
किस बात का गुमान करता है बन्दे,
पाकर गुमान ना कर, खोने का गम मत कर।
भूकम्प का एक झटका आता है,
पल भर में सब छीन जाता है।
जब समंदर को हुआ गुमान पानी पर,
कश्तियाँ उड़ान भरने लगी पानी पर।
जख्म सारे दिखाई दें, कब जरूरी है,
छोड़ते हैं संग भी निशान पानी पर।
दिए को भी गुमान था,कि रोशन जहाँ हमसे,
अँधेरा खाक कर दिया,फिर गुमान कैसे।
दिया खुद को ढूढता ,की मैं कहां हुँ,
तेल खत्म हो चुका था ,फिर गुमान कैसे।
धन दौलत पर न कर गुमान,
ये हाथ का मैल, एक दिन धुल जाएगा।
न कुछ लेकर आया था, ना कुछ लेकर जाएगा,
तेरा किया धरा यही पर सब कुछ रह जायेगा।
बचपन बीता जवानी बीती,
फिर तो बुढापा आएगा।
एक कोने में पड़ा रहेगा तू,
कोई ना तेरे पास आएगा।
कर दो कुछ कर्म,धर्म,
बाँट दो दोनों हाथों से पुण्य।
यही तेरे साथ चलेगा बन्दे,
बाकी यही सब कुछ रह जायेगा।
जिंदगी बहुत छोटी है, फिर गुमान कैसे,
कब ऊपर से बुलावा आ जाएगा।
हाथ पैर सब होते हुए भी,
चार के कंधे पर चढ़ कर जाएगा।
उड़ रहा हूं अपनी काबलियत पर,
ये पतंग को भी गुमान था।
उसको जमीन का धागा जोड़ा , क्या उसे ध्यान था,
आया हवा का एक झोंका वो बडा तूफान था।
तोड़ दिया उस बन्धन को ,
जिससे पतंग अनजान था ।
कुछ को गुमान है अमीरी पर,
कुछ को गुमान अपने लकीरों पर।
अहंकार रावण को भी था,
ना कर गुमान तकदीरों पर।।
लेखिका: – एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज