किस दिशा में इंसान रे
***किस दिशा में इंसान रे***
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किस दिशा में आज इंसान रे,
मुँह रहा है मोड़ भगवान रे।
मैल मन में है जमी रहती सदा,
क्यों करे दानव सा अभिमान रे।
पाप तन मन मे समाये रहें,
क्यों बना है रूप शैतान रे।
खो दिया विश्वास है आम का,
बन गया है क्रूर हैवान रे।
मात मनसीरत यहाँ खा रहा,
क्यों उठाता खूब नुकसान रे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)