***किस दिल की दीवार पे…***
***किस दिल की दीवार पे…***
लोग सिर्फ साँसों तक ही साथ देते हैं
साँसों के बाद जिस्म ही जला देते हैं
चंद दिनों तक जलते हैं यादों के दिए
फिर इक तस्वीर दीवार पे सज़ा देते हैं
हाँ
मेरे शब्द भी शायद यूँ ही खो जायेंगे
न जाने ये कब किस का स्पर्श पायेंगे
कौन देगा अपनी पलकों पे जगह इनको
किस किताब में ये शब्द पढ़े जायेंगे
हर जिस्म की तरह इनका भी जिस्म होता है
हर जिस्म की तरह ये भी फ़ना हो जायेंगे
फर्क ये है की जिस्म खाक में मिल जाते हैं
ये बदनसीब टुकड़ों में सिमट जायेंगे
बीते ज़माने सा कभी इनका वजूद हो जाएगा
किसी अलमारी में ये भी सजा दिए जायंगे
जब कभी इन टुकड़ों पे किसी का दिल आएगा
जी उठेंगे फ़ना होकर भी जब ये पढ़े जायेंगे
गुजरों को याद करे किसके पास ये फुर्सत है
जाने किस दिल की दीवार पे ये जगह पायेंगे
सुशील सरना