किस तिजोरी की चाबी चाहिए
किस तिजोरी की चाबी चाहिए
यादो की खामोशी वारदात पर
वो निकल कर बोला आक्रोश ही था
वादों की तकरार पर खड़ा होकर बोला
हा खामोश होकर मैं सुन रहा था
मुझे किस तिजोरी की चाबी चाहिए
खामोश कराकर उसने ओरो की मेहनत छिपायी
राजदार को देख उसके मेहनत की बौखलाहट आयी
कभी भी मैने अपनी मेहनत का स्वाद ना चखाया
क्यो मुझे किस तिजोरी की चाबी चाहिए
कालाधन. एक आवाज पर गुल हुआ
समाधान रख जीवन की निगाहो पर भूल हुयी
वो पूंजी घबराकर हर दुखी मन के विचारो पर शूल हुयी
पाबन्द होकर आज बोला व्यर्थ हुयी कि
– मुझे किस तिजोरी की चाबी चाहिए ।।