किस का जूता, किस का सर
किस का जूता, किस का सर
कौन है किस के कदमों पर
जातिवाद गर खत्म हुआ तो
ये कौन भंगी है जो, झुका है गुठनों पर… ?
थूक चाटता है आज भी ठाकुरों के दर पर… ?
समता- समानता के सुंदर नामों पर
हजार सपने दिखाई जाती है आसमान पर
‘जाति’ है जो पैर धोने से भी नही जाती है
और शर्म है जो न उनको न हमको आती है
बदनाम करते हो पुरखों को और
अंदर-अंदर जाति को और मजबूत बनाते हो
जाति-धर्म के नाम पे मदहोशी का सौदा कराते हो
झूठ बोलते हो हम से,फरेब बेचते हो हम से
ये समता- समानता हो ही नही सकता है
एक आदम झुके गुठनों पे, दूजा जूतों से सुताई करे
एक खाये अघाये दूजा,सबर करे थूकाई पर
बात हो समानता की तो रहे न कोई भेद भाव
अधिकार रहे सब को एक सा धरती और गगन पर
न्याय की बात हो अगर तो, सब को हक समान मिले
हवा और रौशनी जैसे करती नही ‘दान’ देख जाति-वर्ग पर
सब की हक कि बात करे हो तो … सब को हक समान दो
बलि फिर काहे का जान और आत्मसम्मान का
जाति-धर्म के नाम पर,
… सिद्धार्थ