किस्सा / सांग – # पिंगला – भरथरी # & टेक – पड़ी फिक्र मै किस ढाला बुझै भरतार तेरा सै।
किस्सा/सांग – पिंगला – भरथरी #अनुक्रमांक-10#
आज कवि शिरोमणि पंडित राजेराम भारद्वाज संगीताचार्य जो सूर्यकवि श्री पंडित लख्मीचंद जी प्रणाली के प्रसिद्ध सांगी पंडित मांगेराम जी के शिष्य जो जाटू लोहारी (भिवानी) निवासी है | आज मै उनका एक भजन प्रस्तुत कर रहा हु | उपरातली / शामिल का यह 4 कली का भजन पिंगला भरथरी के किस्से से है| इस रागनी मे सज्जनों कवि ने अपनी पहली कली मे 15 फूल लगाए है और बाकि की 3 कलियों मे 12-12 फूल लगाए है | इस रागनी मे कवि ने उस मौके का भाव देखते हुए एक बहुत ही अदभुत तर्ज के साथ एक अदभुत रचना के भाव को प्रदशित किया है और ऐसी रचनाये हमको कभी कभी और कही कही ही और शायद बहुत ही कम देखने को मिलती है| पंडित राजेराम जी ने अपने दादा गुरु श्री लख्मीचंद प्रणाली को दर्शाते हुए अपने गुरु पंडित मांगेराम जी के आशीर्वाद से गुरु श्रद्धा के रूप मे उन्होंने इस कथा की अब तक 32 से 36 रचनाओ की रचना की जो उन्ही मे से एक बीच की रचना इस प्रकार है |
अभिवादन :- जिस किसी भी सज्जन पुरुष को जैसी भी ये कविता लगे वो सज्जन पुरुष comment Box मे comment जरुर करे कृपा करके Like का सहारा न लेकर सिर्फ Comment ही करे | अगर लिखने मे जाने-अनजाने मे कोई गलती हुई हो तो उसके लिए मै क्षमा चाहता हूं |
वार्ता:- सज्जनों | जब विक्रम द्वारा पिंगला रानी के बारे मे उसकी बात सुनकर जब भरथरी रानी पिंगला के महल मे जाता है तो पिंगला अपना त्रिया चरित्र फैलाकर अपने हार सिंगार उतारकर आसनपट्टी ले के धरती मे पड़ जाती है| जब भरथरी अपनी रानी पिंगला का यह हाल देखता है तो उसके उदासी चेहरे को देखकर राजा भरथरी रानी पिंगला को क्या कहता है और रानी क्या जवाब देती है |
जवाब – राजा भरथरी और रानी पिंगला का |
पड़ी फ़िक्र मै किस ढाला बुझै भरतार तेरा सै || टेक ||
राजा भरथरी –
सांझी तन का तेरे मन का कौण सा ख्याल जता राणी
करती नखरे नाज आज के होगी कोए खता रानी
सै फीका चेहरा क्यूँ तेरा मनै बेरा नहीं बता राणी
राणी पिंगला –
बिछड़या कृष्ण राधे प्रसन्न कोन्या दर्शन करे बिना
झगड़े टंटे चौबीस घंटे मै उमण धुमणि तेरे बिना
बदन फूल सा मुर्झाया ना छाया दरखत हरे बिना
राजा भरथरी –
हाथी घोड़ा सुख पालकी जुड़वा दूंगा सैल करण नै
खस-खस आले पंखे नीचै बिछरी शतरंज खेल करण नै
क्यूँ पड़ी उदासी सोला राशी सौ दासी तेरी टहल करण नै
राणी पिंगला –
कहूँ खरी सुण बात मेरी मै तेरी पतिभ्रता हूर पिया
दिल डाट अलग ना पाट चाहे सिर काट जै मेरा कसूर पिया
लिए बुझ ब्रह्म तै मरी शर्म तै नहीं धर्मं तै दूर पिया
राजा भरथरी –
दमयंती सी रूपवंती तू सतवंती सत की नारी
सीता और सुनीता गीता जिसी द्रोपद गंधारी
शंकुंतला सत की उर्मिला इसी मनै पिंगला प्यारी
ना कोए बिसरावण आला मेरै इतबार तेरा सै || 1 ||
राणी पिंगला –
शाम सबेरा मिलणा तेरा लागै कोन्या मेरा जिया
सहम तवाई भरदी बेदर्दी बज्जर का तेरा हिया
मेरै रूम रूम मै बसै भरथरी चीर कलेजा देख पिया
राजा भरथरी –
ना मांग सिंदूरी खिंडी लटूरी होया डामाडोल शरीर तेरा
धरुं सिर पै ताज गद्दी पै राज कर आज तू मै वजीर तेरा
खड़ी बांदी पास चेहरा उदास क्यूँ मृगानयनी बीर तेरा
राणी पिंगला –
गन्दा फूल भंवर अँधा जणू चंदा बिन चकोर पिया
तन की तृष्णा मन की ममता चित की चिंता चोर पिया
धर्म धुरंधर बन्दर आली तेरे हाथ मै डोर पिया
राजा भरथरी –
दखणी चीर घाघरा 52 गज का कलीयादार गौरी
कुण्डल कान जंजीरी तुंगल पायल की झंकार गौरी
छण कंगण हथफूल गजरिया नाथ गुलिबंध सार गौरी
कित कंठी मोहन माला कित चंदन हार तेरा सै || 2 ||
राणी पिंगला –
सादा भोला कहै नेक मनै देख लिया तेरा विक्रम भाई
फिरै लफंगा और गैर न्यूं कहै शहर के लोग लुगाई
ख्याल तेरै ना रंज मेरै फिरै तकता बेटी बहु पराई
राजा भरथरी –
बिक्रम भाई नहीं इसा तू किसनै दी भका राणी
झूठ सांच का पनमेशर कै न्या होगा दरगाह राणी
हाकिम टोरा तेरा डठोरा जाणु तेज शुभा राणी
राणी पिंगला –
सुण करके ढेठ होई कई हेट जा घरा सेठ कै आज पिया
करै डठोरे सेठ के छोरे की बहु पै धर ध्यान लिया
फिरै दीवाना कहै जमाना लूटा खजाना माल दिया
राजा भरथरी –
खैंचाताणी राणी घर मै सोच फिक्र मै डोली काया
वो निर्दोष होश कर दिल मै झूठा चाहवै दोष लगाया
शील गंगे भीष्म तै कम ना बिक्रम भाई माँ जाया
उसकै नहीं पेट काला गलत विचार तेरा सै || 3 ||
राणी पिगंला –
ढोल भ्रम के सुण विक्रम के मारै गम के तीर पिया
बोल सुणू सिर धूणू बणू के मै दोया की बीर पिया
कहरी सू बे धड़कै लड़कै तड़कै जांगी पीहर पिया
राजा भरथरी –
बोल जिगर मै दुखै फूंकै थुकैगी दुनिया सारी
तेरै हवालै करगी मरगी पानमदे मात म्हारी
भाई काढ्या अन्यायी नै भाभी आई कलिहारी
राणी पिंगला –
डाट जिगर नै पन्मेशर कै देणी होगी ज्यान पिया
गंगा माई की सूं खाई नहीं बोली झूठ तूफान पिया
विक्रम सै बदमाश खास इतिहास कहैगा जहान पिया
राजा भरथरी –
लख्मीचंद शिष्य मांगेराम का धाम पाणंछी सै कांशी
इन बाता मै घर का नाश के थूकै दास तनै दासी
तेरे प्रेम की नर्म डोर कमजोर घली गल मै फांसी
राजेराम लुहारी आला ताबेदार तेरा सै || 4 ||
रचनाकार ::- कवि शिरोमणि पंडित राजेराम भारद्वाज संगीताचार्य |
प्रस्तुतकर्ता ::- संदीप शर्मा कौशिक
लोहारी जाटू, बवानी खेड़ा, भिवानी (हरियाणा)
सम्पर्क सूत्र ::- +91-8818000892 / 7096100892