किस्सा–द्रौपदी स्वयंवर अनुक्रंमाक–10
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–द्रौपदी स्वयंवर
अनुक्रंमाक–10
वार्ता–अर्जुन द्वारा स्वयंवर की शर्त पूरी करने के बाद जब द्रौपदी वरमाला ले कर अर्जुन के गले में डालने के लिए चलती है तब उसकी सखी सहेली बोलती हैं की तुम एक राजकुमारी और इस साधु के साथ शादी करोगी,,तब द्रौपदी उनको जवाब देती है।
टेक–इस बाबाजी कै गैल मं गुजारा होज्यागा।
कुटिया का महल चौबारा होज्यागा।।
१-सुरजमुखी की ढाळ खिलुंगी,दर्शन कर मेरी भाण चलुंगी,
सेवा मं त्यार मिलुंगी,जरा ईशारा होज्यागा।
२-बुरा होता मनसिज का फंदा,देता बणा मनुष्य को अंधा,
मत करो संत की निंदा,मेरा मन खारा होज्यागा।
३-तेल उबटणा ब्याह का लाया,फेर होज्यागा रंग सवाया,
यो मनै जागा ब्याहया,बहणोई थारा होज्यागा।
४-छंद जणु मोती पो दिए लड़ मं,जैसे भर दी फूक रबड़ मं,
गुरु बैंडनाथ की जड़ मं,धूणा न्यारा होज्यागा।
दौड़–
के बोली तूं हद होली ना खोली गाँठ भम्र की जा,
मत करो जिक्र यो होया फिक्र मै राम सिखर मं दई चढ़ा,
उल्टी शिक्षा मतना लाओ,मतना इसकी टाळ कराओ,
बहना सुण ल्यो ध्यान लगा,
मं नहीं इब तो कुँवारी,इबकै मेहर कर दी मुरारी,
बियाबान जंगल के म्हां बेसक मं दुख पाऊँ भारी, पर इसकै साथ कराऊं ब्याह,
ध्यान चरण म्ह ला ल्युंगी,मं इसकी टहल बजा ल्युंगी,राजी होकैं खा ल्युंगी,जो होगी सो देखी जा,
नहीं किसे कि करै सुणाई अर्जुन कानी चाली ध्या,
जा करकैं नै अर्जुन कानी माळा जब लफाई,
देखकैं नै राजी होगी फूली दिल मं नहीं समाई,
अर्जुन जब कहण लाग्या बात का करीये विचार,
राजा की लड़की सै बड़ी तूं समझदार,
यज्ञशाला के अन्दर देखो राजा बैठे दस हजार,
साधू संत छोड़कैं नै जोड़ी का टोह ले भरतार,
मेरै माळा घाले पाछै बहोत घणी दुख पावैगी,
यो धरती का मिलै सोवणा नीचै बिस्तर लावैगी,
चीते शेर बघेरे भतेरे बहोत घणी भय खावैगी,
सुन्दर रूप अनूप तेरा हों लख शर्मींदी हूर,
इस तरीयां का रुप तेरा ज्युं केळै बीच कपूर,
तूं बांगां का हरीयल केळा मैं सूं नील बड़ी,
पहरकैं नै आगी लड़की गहणा एक धड़ी,
तेरै धोळे धोळे दाँतां के म्हा अड़मा चूंप जड़ी,
तेरै माथै ऊपर जुल्फ पड़ी मेरे उळझे पड़े लटूर,
मान कहे की उल्टी चल ज्या यो वर तेरा कोन्या,
मेरै हाथ कांगणा पैर राखड़ी सिर पै सेहरा कोन्या,
मै गरीब आदमी निर्धन बंदा घर और ङेरा कोन्या,
उल्टी माळा ले ज्या लड़की लाई किस नाम की,
मेरै माळा घाले पाछै ना रहगी किसे काम की,
हीणे की लुगाई भाभी हो सै सारे गाम की,
कहे सुणे की मानी कोन्या भुजा जब लफाई,
द्रौपदी नै वर माळा अर्जुन कै घलाई,
सारे राजा जळगे कोन्या गात मै समाई,
कहते कुन्दनलाल वर देती दुर्गे माई।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)