किस्सा–द्रौपदी स्वंयवर अनुक्रंमाक–09
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–द्रौपदी स्वंयवर
अनुक्रंमाक–09
वार्ता–अर्जुन अब मछली को उतारने के लिए खड़ा हो जाता है। अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को आंखों ही आखों में ईशारा करके प्रणाम करता है और भगवान शिव से तृतीय नेत्र प्राप्ति के लिए स्तुति करता है।
टेक–ओम् शिव ओम् शिव ओम् शिवजी।
बम ओम् शिव ओम् शिव ओम् शिवजी।।
१-हे नाथ आसरा थारा,लई शरण चरण का सहारा,
सृष्टि का सकल पसारा,सर्वव्यापक सबसे न्यारा,
तुंही तारागण रवि सोम शिवजी।
२-तुंही करता धरता खुद है,भक्तों की लेता सुध है,
तुंही वीर तुंहीं आयुद्ध है,दुष्टों से सदा विरुद्ध है,
तुंही बुद्ध वृहस्पति शुक्र भौम शिवजी।
३-तेरी लग्न कठिन लगनी है,ये माया जग ठगनी है,
तुंही तात मात भगीनी है,तुंही गौतम जमदग्नि है,
तुंही अग्नि है तुंही हौम शिवजी।
४-तुंही ब्रह्म तुंही वेता है,तुंही सबकी सुध लेता है,
तुंही सतयुग द्वापर त्रेता है,तूं सब देवों का नेता है,
तुंही देता है अक्षय जोम शिवजी।
५-तुंही आसमान बन थम रह्या,तुंही पृथ्वी बन जम रह्या,
तुंही माया बणकैं विलम्ब रह्या,ये शुभ अवसर तो गम रह्या,
तुंही रम रह्या रोम रोम शिवजी।
६-अब दया दयाल करो जी,जन की प्रतिपाल करो जी,
सेवक का ख्याल करो जी,सतगुरु संभाल करो जी,
नंदलाल करो दिल मोम शिवजी।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)