किस्सा–चन्द्रहास अनुक्रम–19
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चन्द्रहास
अनुक्रम–19
वार्ता–विषिया महल की छत पर चढ़ कर चंद्रहास के आने का इंतजार करती है।कवि ने उस समय का खुबसूरत वर्णन किया है।
टेक- घर घर मैं चर्चा हो री,गई मालम पाट बटेऊ की,
विषिया चढ़ी अटारी पै,देखै थी बाट बटेऊ की।
१-देखैं नर नार खङ्या करदयो,नगरी बाहर खङ्या करदयो,
एक पहरेदार खङ्या करदयो,ले घोड़ी डाट बेटऊ की।
२-धर दयो गर्म नीर नहाणे नैं,भोजन त्यार करो खाणे नैं,
दियो तकिया लगा सिरहाणे नैं,बिछवा कैं खाट बटेऊ की।
३-स्वर्ण शुद्ध हो कृसानों से,देखी सुणी हुई कानों से,
चंद्रमा और भानों से,ना शोभा घाट बटेऊ की।
४-पति बिन शोभा ना बेसर की,क्यारी खिली हुई केसर की,
दया हुई परमेश्वर की,दई विपदा काट बटेऊ की।
५-मग मैं सूळ बखेरयां पाछै,धंधकै आग कसेरयां पाछै,
नंदलाल कहै फेरयां पाछै,खुलवा दियो आंट बटेऊ की।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)