किस्सा–चंद्रहास अनुक्रम–6
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चंद्रहास
अनुक्रम–6
वार्ता–धाय माता के स्वर्गवास के बाद लड़का अकेला हो जाता है।एक दिन वह अपने हमउमर लड़कों के साथ जंगल में घूम रहा था तो उसको एक शालीग्राम भगवान की मूर्ति पड़ी हुई पा जाती है।लड़का उस मूर्ति को उठाकर सीने से लगा लेता है।
टेक–आई सीधी सी घड़ी,पाई मूर्ति पड़ी,समझ ज्ञान की जड़ी,झट ठा लई थी।
१-मूर्ति तो ठाई होके नीचा,दिल के अंदर फोटू खींचा,
होया बगीचा हरया,ध्यान प्रभु का धरया,बाप याणे का मरया,मर माँ लई थी।
२-मूर्ति ना थी इसी कुसी,ओर कोय मिल सकती ना उसी,
खुशी गात मै उठाई,बात बात मै उठाई,एक बै हाथ मै उठाई,दिल कै ला लई थी।
३-मूर्ति तो देखी करकैं गौर,शशि नै निरखै जिमी चकौर,
ओर कोय ना संघाती,वा धाय मात याद आती,करकैं बज्र कैसी छाती,गम खा लई थी।
दौड़–
चंद्रहास होग्या उदास वा मूर्ति पास लई बैठा,ये समय आवणी जाणी प्राणी कै ना हाथ बता,
के सोचूं था मन के अंदर क्या से क्या बणगी है या,
करणे वाला ओर जगत मै नर करता चतुराई क्यूँ,होवै मनुष्य के हाथ अगर तो जग मै भरै तबाही क्यूँ,राम नाम बिन चाम काम क्या वृथा उमर गंवाई क्यूँ।
समय समय का खेल जगत मै नहीं किसे तै छानी,
सतयुग मै सतवादी राजा हरीशचंद्र से दानी,
उगे छिपे तक राज करैं थे जग मै चारों कानी,
समय पलटगी काशी जी मै जा भरया नीच घर पानी।
होती उसकै नार हाथ तो ब्राह्मण हाथ बिकाई क्यूँ,
रोहतास मरया था बागां मै तो राणी शमशाणों मै ल्याई क्यूँ,
जै हरीशचंद्र सतवादी था तो राणी डाण बताई क्यूँ।
चार वेद का रावण ज्ञानी राज लंक मै करग्या,
मेघनाद सा पुत्र जिसकै चक्र देश मै फिरग्या,
राहु केतु काल शनिश्चर दशकंधर ससे डरग्या,
तीन लोक की पदवी पा कैं आखिर नै निस्तरग्या।
अपणा कुटुंब खपावण खातर सीया जानकी ठाई क्यूँ,
जै सीता नै मालम थी तो रावण के संग आई क्यूँ,
त्रिया कारण अन्तर्यामी रोये थे रघुराई क्यूँ।
दशरथ के घर रामचंद्र नै पारब्रह्म अवतार लिया,
ऋषि मुनियों की सेवा करकै दुष्टों का संहार किया,
गौतम नार अहिल्या तारी राजा जनक घर वरी सिया,
जै राम नै मालम थी तो रावण संग क्यूँ गई सिया।
युद्ध तभी मेघनाद से निपग्या लक्ष्मण शक्ति खाई क्यूँ,
सुखेन वैद्य बुलवा कै द्रोणगिरी से संजीवन बूटी मंगवाई क्यूँ,
जै वाये बूटी खाणी थी तो लक्ष्मण नै ठुकराई क्यूँ।
पाँचो पाँडव भक्त हरी के वीर धीर बलधारी थे,
भीम नकुल सहदेव युधिष्ठर अर्जुन धनुर्धारी थे,
सच्चे साथी मित्र श्री कृष्ण चंद अवतारी थे,
पाँडव काढ दिये जंगल मै कौरव अत्याचारी थे।
जै विजय वीर अर्जुन था तो गुप्त रहे बलदाई क्यूँ,
श्री कृष्ण जैसे प्यारे थे तो वन मैं विपदा ठाई क्यूँ,
राज इन्हीं को मिलणा था तो नर हत्या करवाई क्यूँ।
समय बैठा दे गद्दी ऊपर समय ताज सिर पर धर दे,
समय खुवा दे दर दर ठोकर दिल के बीच फिकर कर दे,
निर्धन से साहुकार बणा दे जग मै सर्वसम्पन्न कर दे,
जेवर जर जायदाद महल मै पिलंग पोस बिस्तर कर दे।
श्री सेढु लक्ष्मण संकरदास के गुरु गोपाल बताई क्यूँ,
केशोराम द्विज कुंदनलाल या कविताई गाई क्यूँ,
नंदलाल समय ना होती तो मैं करता कविताई क्यूँ।
४-जिसकै सत्संग रंग ज्या चढ़,कहै नंदलाल प्रेम ज्या बढ़,
पढ़ रहे इतिहास,ना रहे शंकरदास,केशोराम पास खास,शिक्षा पा लई थी।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा पात्थरवाली
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)