किस्सा–चंद्रहास अनुक्रम–3
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चंद्रहास
अनुक्रम–3
वार्ता– धाय माता लड़के को लेके कुंतलपुर आ जाती है।एक रोज धाय माता जब चंद्रहास को देखती है तो उसके मन में भिन्न भिन्न विचार उत्पन्न होते हैं,और वो उस लड़के के सामने भाव प्रकट करती है।
टेक–सूनी खेती मृग चरैंगे कौण रूखाळी रे,
कुण बेटा तेरे लाड करै मरी जामण आळी रे।
१- दुश्मन नै बेरा पटज्या वो खो दे जान तेरी बेटा,
या सूरत हरदम बसी रहै दिल दरम्यान तेरी बेटा,
मैं कुशल मनाऊं रक्षा करैंगे कृपानिधान तेरी बेटा,
ये जीव जंत और संत महात्मा वन उद्यान तेरी बेटा,
श्यान तेरी ज्युं चंद्रमा नै लई उजाळी रे।
२- शिवि दधिचि हरिश्चंद्र प्रहलाद और बल होगे,
मारकण्डे स्नकादि लोमश ध्रुव अटल होगे,
सर्वगुण निति निपुण भूप सतवादी नल होगे,
पिता तुम्हारे मरे समर मैं सुयश निर्मल होगे,
फल होगे तुम जैसे जिसकी टूटी डाळी रे।
३- कथा पुराणी याद करूँ मेरे तन का खून घटै बेटा,
एक एक पल कल्प समान या मुश्किल मेरी कटै बेटा,
बिन जोहरी ना परख लाल की कौडी नहीं बटै बेटा,
दरिया कैसी झाल उठती डाटी नहीं डटै बेटा,
ना पटै किसे न भेद हरी की गति निराळी रे।
दौड़–
पुत्र के साथ करै मात बात पकड़ हाथ छाती कै ला,
कहै नार न्युं बार बार मझदार बीच मैं डूबी नाव,
के करूँ जिकर यो होया फिकर राम शिखर तैं दई गिरा,
पल पल हलचल मुश्किल होरी दिल डटता ना एक जगहां,
दारूण दुखड़ा न्युं दिल उखड़ा मुखड़ा मेरा गया मुरझा,
के कहुं ओर ना चलै जोर छूट गई डोर अब नहीं है थ्या,
मैं के न्युं जाणु थी बेटा थारै मैं बण ज्यागी या,
रै विपदा तेरै आग लगा दूँ घर और गाम दिया छुटवा,
घर गाम छुटग्या भाग फूटग्या दुष्ट लूटग्या जाल बिछा,
अरब खरब था बहोत द्रव्य सर्व पराया दिया बना,
धन माल खजाना होया बेगाना आज जमाना बदल गया,
चिण्या चिणाया किला बी ढह ज्या चाँदी की जगह माटी रह ज्या,
बूरे बख्त मै अक्कल बह ज्या माणस के करै,
सुनते जाणा कहै रहया आगै चिन्ता नहीं शरीर की भागै ,
लागै कोढ गात बी गल ज्या,जहाज गरक हो कोठी जलज्या,अरबापति राख मैं रल ज्या माणस न्युं मरै,
नतिजा बुरा कर्म गंदे का किसनै पता तेज मंदे का,जब बंदे का भाग फूटज्या लग्या होया रोजगार छुटज्या,भरया आगै तै थाल उठ ज्या,क्युंकर पेट भरै,
जिसके होज्यां नष्ट धर्म,माणस का ज्या पाट भरम,पिछला करम अगाड़ी अड़ ज्या,गरदीश के मंह नक्शा झड़ ज्या,जिस माणस मैं विपदा पड़ ज्या,प्यारे हों परै,केशोराम अगम का ख्याल,छंद कथैं कुंदनलाल तत्काल,
नंदलाल कहै गाये बिन,बोले और बतलाये बिन,रोटी टुकड़ा खाये बिन,किसनै सरै,
जाड़ हुई जब चणे हुये ना,चणे हुए जब जाड़ टुटगी,
सूनी खेती मृग चरैंगे,मरया रूखाला बाड़ टुटगी,
गुंद जमाण मिलै जापे मै बिलकुल कोन्या चाखण पाई,
तीन रोज के नै छोड़ डिगरगी कोन्या धोरै राखण पाई,
कोन्या मेवा पाकण पाई काची कली निवाड़ टुटगी,
मात पिता तेरे दोनूं मरगे धाय निर्भागण रहगी सै,
और किसे का दोष नहीं या कलम करम की बहगी सै,
बुर्ज किले कि ढ़हगी,चोखट सुधां किवाड़ टुटगी,
मन कि मन मै लेगी सै ना दिल कि घुंडी खोलण पाई,
ना रंग चाव के गीत गुवाये ना बाहर लिकड़ कै डोलण पाई,
नहीं मोरणी बोलण पाई ली पकड़ बिलाई नाड़ टुटगी,
के सुख देख्या मात पिता का राज घरों मै जाया,
सदा नहीं एकसार समय ये ढ़लती फिरती छाया,
इतनी कह कै खड़ी हुई वा लड़का छाती कै लाया,
ले लड़के नै चाल पड़ी कुन्तलपुर मैं आई देखो,
लड़के के लिए उसनै बड़ी मुसीबत ठाइ देखो,
किसे का ना दोष माड़ी करम मैं लिखाई देखो,
पर घर अंदर कार करै विपदा कि मारी देखो,
किसै कै जा पीस दे काढ़ै किसे कै बुहारी देखो,
इस तरीया तै उसनै करकै कार ये गुजारी देखो,
इस तरीयां करते करते उनै बीत गए तीन साल,ध्यान लगाकै सुनते जाणा अगाड़ी का कहैं हाल,
एक रोज धया माता कै सिर पै आकैं चढ़ग्या काल,
कथन करत नित दादा गुरु कुंदनलाल,
४-अली करै मकरंद पान खिलै कंज मृणाल जहाँ,
सिंधु शिप बीच मोती रहैं मग्न मराल जहाँ,
सेढु लक्ष्मण शंकरदास के परम गुरु गोपाल जहाँ,
केशोराम बास बेहद का जा सकता ना काल जहाँ,
कुंदनलाल नंदलाल जहाँ चालो पाथरआळी रे।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)