किस्सा – – चंद्रहास अनुक्रम–15
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा – – चंद्रहास
अनुक्रम–15
वार्ता–विषिया और उसकी सखियां तैयार होकर बाग में जाने के लिए घर से निकलती हैं,उस समय कैसा माहौल था ,उसका कवि ने वर्णन किया है।
टेक-सारी हिल मिल चालो हे बेबे, झूल बाग मैं घालो हे बेबे,
ठा ल्यो रेशम डोरी।
१-तरह तरह के फूल खिले गुलशन के दरम्यान सखी,
मंगलाचार गांवती चाली, सजा सजा के यान सखी,
लख श्यान सखी रंभा लाजै थी, पायां मैं पायल बाजै थी,
छम छम छननन होरी।
२-पय पानी का मेल प्रीति दीपक संग पतंग की हे,
अली कली रस वश फसज्या, हो बुरी मार अनंग की हे,
संग की सखी सहेली आगी, चम्पा और चमेली आगी,
जयदेयी जयकोरी।
३-चपला चमकै घनघौरै, खुश होरये परमेश्वर हे,
माथै बिंदी ला राखी, मुख शोभा दे रही बेसर हे,
केशर और खजानी आगी,सोना सुरती नान्ही आगी,
छन्नो और पतोरी।
दौड़ – –
सुरमे की रेख दर्पण मैं देख मीन मेख छोड़ी कोन्या,
बाह लिये केश ईसा किया भेष देख कैं जा परी लजा,
पहरी कुर्ती कर फुर्ती ज्युं मूर्ती धरी मंदिर के म्हां,
ओढ़या चीर दिपता शरीर तस्वीर देख कैं जा शरमा,
पहरया दामण कामण ज्युं सामण मैं चपला चमके खा,
रेशम का नाड़ा बिघन का खाड़ा,सर्प घुराड़ा चढ़ग्या आ,
पहरी पायल जायल मायल घायल देखणीया होज्या,
गाती और बजाती जाती,मदमाती हाथी ज्युं पा,
वो बाग बीच पहुंच गई देखो काम करैं थी क्या,
बगीचे मैं घूम रही सखियों की टोळी रै,मुरगाई ज्युं चक्कर काटैं ओळी सोळी रै,
पडैं थे पळाके जैसे दामिनी घन मैं,हाथि कैसी चाल कटि जिमि केसरी वन मैं,खिलया होया फूल झूल घली गुलशन मैं,गावती मंगलाचार राजी हो रही मन मै,ईशारे से चालैं थे ज्युं रण मै गोळी रै,
हाथां महंदी लाई सब सिंगार कर राख्या,हार लड़ी गळ पड़ी हुई सजा सजा नग धर राख्या,केश गुळझटीदार ज्युं फण ठा विषियर राख्या,कपड़्या मै खुशबु ऊठै रम्या इत्र राख्या,बोली मैं रस भर राख्या ज्युं मिसरी सी घोळी रै,
करैं थी अंघाई अंगड़ाई सी टूटैं थी,जोबन जल का ताल झाल मनसिज की उठैं थी,आपस मैं हंस हंस कै रस सा घूंटैं थी,शीतल मंद सुगंध हवा आनंद सा लूटैं थी,पिचकारी सी छूटैं थी ज्युं फागण मैं होळी रै,
शंकरदास समाधी से जो दिल नै डाटैं सै,गुरु कृपा से हटै अंधेरा बेरा पाटै सै,केशोराम नाम रटकें बहु बंधन काटैं सै,नुगरे का एतबार नहीं हाँ भर कै नांटैं सै,ज्युं नंदलाल पतासे से बाटै सै भर भर झोळी रै,
कोय सखी फूल तोड़ै,हार जो बणावण लागी,ल्याकर कैं नै हार सखी विषियां नै पहरावण लागी,कोय सखी गोता मार जल कै अंदर नाहवण लागी,कोय सखी झूलती कोय तो झूलावण लागी,झूलती तो हाथ जब आगै नै लफावण लागी,
तोड़ कैं नै नाक अपणी सासुआं के ल्यावण लागी,
इतणै मै के कारण हो परमेश्वर की फिरी दया,एक सखी न्यारी पाट सखियां तैं चाली जा,चंद्रहास पड़या था सुत्या उसके धोरै पहुंची जा,देख श्यान नै राजी होगी फूली नहीं समाई,तावळ करकैं चाल पड़ी विषिया कैं धोरै आई,धौरे आकैं कहण लागी ,आज्या मंत्री की बाई,
तेरै ऊपर आज राजी यो हो रह्या करतार,आकैं दर्शन करले बहना मतना लगावै बार,कहते केशोराम नाम लेणे से हो जाते पार।
४-शंकरदास गुरु कृपा से केशोराम काम सुधरे,
कुंदनलाल हाल कहते नित कविताई मै रंग भरे,
कर खरे दाम के खोटे दे,नंदलाल बाग मैं झोंटे दे,
झूल रही सब छोरी।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)