किस्सा–चंद्रहास अनुक्रम–14
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चंद्रहास
अनुक्रम–14
वार्ता–चन्द्रहास बाग में विश्राम कर रहा था। उधर से विषिया अपनी सहेलियों को बुलाने के लिए नायण को भेजती है। सभी सखी सहेली बाग में झूलने के लिए तैयार होती हैं, उनके श्रृंगार का कवि ने वर्णन किया गया है..
टेक–घर घर नायण बुलावण लागी,सब बण ठण के नै आवण लागी,
इसे गीत सुरीले गावण लागी,ज्युं कोयल बोलैं बाग मै हो मेरे राम।
१-कहैं क्या शोभा शील सति की,देख कै डीग ज्या मति जति की,
छवि रति की चौरी थी,जितणी संग मै छोरी थी,इसी चमचम चमचम हो री थी,ज्युं बत्ती चसै चिराग मै हो मेरे राम।
२-गळ मै पहरया हार सुनहरी,जैसे चपला चमके दे री,
बडबेरी ज्युं हाल्यैं थी,कत्ल करण की श्यालैं थी,इसी मुड़तुड़ के नै चालैं थी,ज्युं जोश भरया हो नाग मै हो मेरे राम।
३-दसन ज्युं मोती शीप उगल री,बदन की छवि शशि मैं मिल री,
खिलरी थी फुलवारी सी,ज्युं चमकै चश्म कटारी सी,इसी छूट रही पिचकारी सी,ज्युं मची धुलैंडी फाग मै हो मेरे राम।
दौड़–
सखी सहेली होगी भेली, फूल चमेली खिल्या होया,
वै बण ठण कै नै आवण लागी,गीत सुरीले गावण लागी,फुली नहीं समावण लागी,
भारी होया उमंग रंग चा,विषिया धोरै पहुंच गई,जाकर कै नै कह सुणा,
ऐ तावळ करके कर ले तैयारी,क्यूँ राखी सै देर लगा,
चंदन चौकी घाल दई उसकै ऊपर दई बिठा,साबण तेल लगा कै वा,मिन्टा के म्हां दई नह्वा,हार सिंगार सजावण लागी,गहणा वस्त्र लिया मंगा,
पैदा होते साथ शरीर कै ये सोळहा सिंगार सुणो,सोळहा करती फेर बाद मै उनका भी विस्तार सुणो,कवियों की करामात देख कविता रूपी सार सुणो,
हाथी कैसी चाल ख्याल कर मृग नयन हुणियार बताया,खरहे कैसे कान ध्यान ला मिलै ज्ञान मै सार बताया,चीते कैसा लंक हूर का बणा दिया करतार बताया,इस तरीयां की बिद सिद्ध मिल ज्या होळी कोड त्योंहार बताया,पशुओं मै ये चार बताया,पक्षी भी हों चार सुणो,
आच्छी भुंडी नारी सारी बणा दई भगवान सुणो,ये चार किस्म की त्रीया हो ना सबका एक मिजान सुणो,
भौंह भँवरा कीर नासिका कोयल जिसी जुबान सुणो,खंजन जैसी होये चपलता खूब लगा के ध्यान सुणो,प्रधान सुणो जो होय सभा मै कर दे निखार सुणो,
तज दे गर्व गुमान बावळे,मिट्टी का अस्थूल बताया,पैदा सो नापैद जगत में ये प्रजा का रूल बताया,भज कै होज्या पार धार से राम नाम निजमूल बताया,
हृदय कमल नाभी चमेली महुआ कपोल ये सहूल बताया,चार किस्म का फूल बताया,कनक ग्रिवा सुथार सुणो,
श्रीफल जैसा शीश हूर का,दाड़म जैसे दांत देखिये,छोटी छोटी कूच बतलाते नींबू को करै मात देखिये,होठ गिलोरी पाहन जैसे असली त्रीया की जात देखिये,नंदलाल हाल कहै बेगराज कविता जग मै विख्यात देखिये,
सोळह साथ पैदा होते सोळह फेर करती लुगाई,कविता रूपी गहणा होता कवियों की ये चतुराई,
अंगशुचि मंजन करणा दिव्य वस्त्र पहरैं भाई ,अर्क जांघ मै मळैं,दस्तों कै महैंदी लगावैं,हुस्न हंस मुख और मुख रंग राग गावैं,नख रंगणा स्याही घालैं अधरों पै लाली रचावैं,
लजावती केश सुधारणा मांग मै सिन्दूर भरैं,चिबुक पै तिल करैं मस्तक ऊपर बिंदी धरैं,पतिव्रता नारी होती बूरे कर्मों सेतीं डरैं,
पतिव्रता पति साथ करै नहीं छल देखो,धैर्य स्वरूप सिंधु शील रूपी जल देखो,साफ सुथरी रहणा चाहती त्याग देती मल देखो,
दुख सुख रोग भोग लिखे प्रारब्ध मै,पतिव्रता सुरती रखती हरदम पति पद मै,शील सबर संतोष धारती भरै नहीं मद मै,
सति पति को ना नाराज राखै हो,पति की मति दिल अंदाज राखै हो,धर्म कर्म शर्म रूपी पाज राखै हो,
भजनों के प्रेमी नेमी जन बैठे तमाम,बारह होते आवरण उनके भी बताऊं नाम,नूपूर किंकणी तीसरा बताया हार,बाजूबंद कंगण और चूड़ियों की झनकार,नख रंगणा स्याही घालै,मुख पै बेसर की बहार,बिरिया टीका शीश फूल बारह ये बताये तैयार,कहते केशोराम नाम लेणे से हो जाते पार,
४-कुंदनलाल ज्ञान की तेग,डाट ले मन कपटी का वेग,
गरजै मेघ गरज हो ऐसी,लरजै बांस लरज हो ऐसी,कहै नंदलाल तर्ज हो ऐसी,ज्युं मिलै रागनी राग मै हो मेरे राम।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)