किस्सा–चंद्रहास अनुक्रम–20
***जय हो श्री कृष्ण भगवान की***
***जय हो श्री नंदलाल जी की***
किस्सा–चंद्रहास
अनुक्रम–20
वार्ता–चंद्रहास चिट्ठी ले जाकर मदन कंवर को दे देता है,जब वह पढ़ता है कि इसको विषिया दे देना तो वह एक क्षण के लिए रुक जाता है,फिर वह पत्र को ले जाकर अपनी माँ को शौंप देता है।विषिया की माँ इस खबर से बहुत खुश होती है।चारों तरफ विषिया की शादी की खबर फैल जाती है।चंद्रहास को एक अलग महल में ठहराया जाता है,उधर विषिया की सहेलियों को भी खबर हो जाती है और सारी सखियां मिलकर चंद्रहास को देखने के लिए चल पड़ती हैं।कवि ने उस दृश्य का खुबसूरत वर्णन किया है।
टेक- जीजी जीजा जी नैं निरखण चालो डांडळवासे मैं।
१- लक्ष्मी सावित्री शव्या और दमयन्ती आगी,
सुमित्रा काैशल्या सीता और बसन्ती आगी,
भन्ती आगी होगी रूशनाई ज्युं गैस चासे मैं।
२-चम्पा और चमेली नैं था चाव गाणे का,
नई नई तर्जों मैं था गीत हरियाणे का,
बेबे जाणे का के डर हो सै खेल तमासे मैं।
३-होंठो पै सुरखी नखों पै रंग रच-रच कैं,
डोली ऊपर बैठ चालो सारी जच-जच कैं,
यूं ही पच-पच के मर ज्यावोगी इस घर के रासे मैं।
४-कुन्दनलाल रंग चाव मिठाई बटैं थी,
नंदलाल हाल कहै झाल डाटी ना डटैं थी,
सूखी पूळी सी कटैं थी ज्यूं आ रया बाढ़ गंडासे मैं।
कवि: श्री नंदलाल शर्मा जी
टाइपकर्ता: दीपक शर्मा
मार्गदर्शन कर्ता: गुरु जी श्री श्यामसुंदर शर्मा (पहाड़ी)