किस्सा – काश्मीर की घाटी का
किस्सा – काश्मीर की घाटी का
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दोहा
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जकड़ी थी जो पाक ने, जन्नत सी जागीर।
चाणक्यनीति संग्राम से, पाया वो कश्मीर।।
दो हजार उन्नीस में , पाँच अगस्ती शाम।
भारत के दो शेर ने, किया अनौखा काम।।
जिसकी सत्तर साल से, रही प्रतीक्षा रोज।
ईश्वर की कृपा तले, लिया मार्ग वो खोज।।
कविता
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आज सुनाऊँ किस्सा तुमको, काश्मीर घाटी का,
महके जिसकी वादी वादी, जन्नत की उस माटी का ।
घर बैठे कुछ ग़द्दारों ने , उसपर धाक जमाई थी ,
जन्नत की उस बगिया में , आतंकी पौध उगाई थी ।
370 – 35 – A की , हतकड़ियों में कैद किया,
आड़ प्रथाओं की ले लेकर , हर पल काम अवैध किया।
वो नोंच के बोटी जन-जन की, घर को शमशान बनाते थे,
मासूमों के हाथों में आकर हथियार थमाते थे।
बच्चे बूढ़े नर नारी सब, मौत के भय से डरते थे,
हँसना भूल गए थे सारे , घुट घुट आहें भरते थे।
रक्षक पहरेदार बना , दो लख सैनानी भेज दिए,
जा वीरों ने रचा चक्रव्यूह , सब आतंकी घेर लिए।
मुफ़्ती अब्दुल्ला नज़रबन्द कर, कूटनीति काम लिया,
मोदी जी ने हर बन्दे को , राहत का पैगाम दिया।
नियम नये कुछ लागू कर अब , जन्नत नई बसाई है,
सत्तर साल में यारो अब, पूरी आज़ादी पाई है।
विश्व विजय का सिंह नादकर , अदभुत संख बजाया है,
अब काश्मीर की वादी को, माँ का सरताज बनाया है।
भारत माँ दुल्हन सी सजकर, देखो सम्मुख आयी है,
झूम रहे नर-नारी-बच्चे, लहर खुशी की छायी है।
अब काश्मीर की घाटी में , खुशियों का परचम फहरेगा,
घर घर की छत पर यारो, अब रोज तिरंगा लहरेगा।
आतंकी मनसूबे सारे , आज हुए हैं खण्ड-खण्ड ,
जन जन के ह्रदय से निकला, जय वीरो जयघोष प्रचण्ड
घाटी का ये चप्पा चप्पा, वन्देमातरम बोल रहा,
भारत की हुँकारों से अब, भू मण्डल भी डोल रहा।
दुनियाँ के नक़्शे से इक दिन, नामोनिशां मिटा देंगे,
गर दुश्मन ने चाल चली, तो माटी में दफना देंगे
‘माही’ का लेखा जोखा , जिस दिन करवट बदलेगा,
उस दिन यारो दुनियां का ये, नक्शा फिर से बदलेगा।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’