किस्मत
आरजू थी बस इतनी ….
बन दुल्हन तेरी मैं,
तेरे घर में आऊँ ll
हँसते-खिलखिलाते,
खुशियों से तेरा,
घर-आँगन सजाऊँ ll
साथ तेरा पाकर,
पास तेरे आकर,
तुझी में खो जाऊँ ll
उलझी ऐसी किस्मत…
बिछे राहों में काँटे,
हुए लहूलुहान पाँव !!
खामोशियां छाईं
टूटे दिल के सपने
मिली नहीं छाँव !!
न जाने…..
वो किस्मत की धनी थी,
या मेरी वफा में कमी थी