” किस्मत में कहाँ छप्पन भोग ” !!
आग बरसती बड़ी तपिश है ,
चमकी से चमके हैं लोग !!
खड़े कुपोषण और गरीबी ,
भाषण से कुछ ना होगा !
स्वास्थ, चिकित्सा , शिक्षा सस्ती ,
यह तो बस करना होगा !
भूखे पेट जो सोये बच्चे ,
दस्तक देते खड़े हैं रोग !!
कमतर सुविधाएं पाई हैं ,
अस्पताल हैं भरें पड़े !
जब अभाव से जूझ रहे वे ,
सूख गये सब नोट हरे !
निर्झरणी से , माँ के आँसू ,
कौनसी चौखट देवे धोग !!
खूब फरेबी आश्वासन हैं ,
बरसों से पाते आये !
कमर झुकी श्रम करते करते ,
सदा मिले ढलते साये !
आँखों में विश्वास जगे फिर ,
वही चाहते सफल संयोग !!
नयी सदी है नयी आस है ,
पावस को ताके हैं हम !
कहाँ खुशी झोली में सबकी ,
ज्यादा के हिस्से में ग़म !
रूखी सूखी मिल जाये बस ,
किस्मत में कहाँ छप्पन भोग !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )