*”किस्मत के खेल निराले”*
“किस्मत के खेल निराले”
जीवन का खेल निराला ,कोई हो गया मतवाला।
कभी काली रातों में ,कभी चाँदनी रातों में ,
किस्मत के खेल निराले।
किस्मत की बात किस्मत ही जाने पहचाने ।
कभी बुरा हाल ,कभी अच्छे दिन सुहाने।
दुनिया की इस माया नगरी में ,अजब गजब खेल है निराले।
फैशन का ये जलवा ,कभी सूखी रोटी कभी पूड़ी हलवा।
कुछ दर्द मिला थोड़ा सा ,खुशी मिले प्रभु जीवन कर हवाले।
सुख दुःख खुशी गम मिले ,धूप छांव लग जाये।
कोई चले पैदल कोई घोड़ा गाड़ी निकाले।
कोई पढ़े डॉक्टर कोई इंजीनियर कोई अंगूठा छाप ही रखवाले।
कोई पहने सूट बूट में ,कोई धोती कुर्ता पैजामा में जीवन बीता ले।
कोई खेती किसानी कोई व्यापार करे,
कोई मेहनत मजूरी करे रोजी रोटी कमा परिवार पाले।
कोई घूमे देश कोई विदेश में, कोई गाँव गलियारों में जीवन बीता ले।
कोई रहे झोपड़ी में, कोई महल अटारी में ,
कोई फुटपाथ पर ही जीवन गुजार ले।
किस्मत का खेल निराले ,किसी को मिले खजाना,
कोई जमापूंजी पास नही, फूटी कौड़ी मुश्किल से निकाले।
शशिकला व्यास