किस्मत कब दे दे धोखा
तेरी हस्ती ही क्या है,
और क्या है तेरा वजूद
दिन निकलेगा तो घर से
बाहर निकलेगा जरूर !!
अपने पथ पर राही तुझ
को जाना तो रोजाना है जरूर
फिर काहे का करता घमंड
हो जाएगा यह चकनाचूर !!
पल भर कि खबर नहीं,
किस करवट जा बैठेगा ऊंट
अपने सांसो कि माला का
कर पगले ध्यान यह न जाना भूल !!
राह में अगर मिल जाये कोई
जो करे तुझ से कुछ फ़रियाद
मदद तो करना उस की जरूर
पर पहले करना अपने रब को याद !!
न जाने किस भेष में कोई
आकर करदे तुझ पर अत्याचार
यह जीवन कलियुग भरा है भईया
अब लोगो में नहीं रहा है प्यार !!
किस्मत का क्या हे, न हो जाये
राह चलते कभी कोई धोखा
“अजीत” समझा तो सभी को अपना है
पर पता नहीं कब कोई दे दे धोखा !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ