“किसे दोष दें”
किसे दोष दें
किसे कहें प्रकाश
विपदा की इतनी सुरत
कब देखी थी
जितनी देख रही सदी एक साथ
अभी तो कैद ने जामा पहना है
संभल संभर कर पग निकलें हैं
कलियों को कहां नसीब है सावन
कभी जले कभी गीले हैं
ये क्या तय है ऊपरवाले
ये फैली गरज के चमक है क्या
बीजली गीरती
हम भी जाने
जग बस दूर से पहचाने
ये क्या रुप है ले के आया
गरज के चमकी या चमक गीराया
माफ करो अब जग को तुम भी
एक मौका जीवन का दो
सावन है हाँ आनेवाला
उतरार्द्ध को युं कफन न दो हाँ उतरार्द्ध को युं कफन न दो
ईश्वर सबको शरण दो ? सब लाल तुम्हारे आँगन के ☀️
©दामिनी ✍