किसी मोड़ में
■ किसी मोड़ में
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जिंदगी के इस भागदौड़ में,
तुझे पा न सके आशिकों की हौड़ में ,
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पता है तू सबसे जुदा है,
मिलता नही ऐसा कोई लाख-करोड़ में ।
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आवारगी थी छाई, बेपरवाह थे हम,
फिरते रहे दर – बदर , तमन्नाओं के जोड़ – तोड़ में ।।
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तमाम कोशिशों के बावजूद हार गया मैं,
दरमियां रिश्तों के गठजोड़ में।
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अंजान था मैं, और नादान भी,
छूट ही जाती है मंजिल अकसर थाम- छोड़ में।।
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क्या हुआ जो क़ाबिल न था तेरे,
इस मर्ज की दवा भी तो न थी मेरे “जी-तोड़” में।
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हमारा जुदा होना इत्तिफ़ाक़ था,*
आज नही तो कल मिलेंगे फिर किसी मोड़ में।
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✍✍ देवेंद्र