किसी को मारकर ठोकर ,उठे भी तो नहीं उठना।
किसी को मारकर ठोकर ,उठे भी तो नहीं उठना।
किसी का तोड़कर दिल , जिए भी तो क्या जीना।
रहे लिपटे सदा निज स्वार्थ में तो क्या मिलेगा जी,
मरे जो दूसरों के हित तो कहते है इसे मरना।
कलम घिसाई
किसी को मारकर ठोकर ,उठे भी तो नहीं उठना।
किसी का तोड़कर दिल , जिए भी तो क्या जीना।
रहे लिपटे सदा निज स्वार्थ में तो क्या मिलेगा जी,
मरे जो दूसरों के हित तो कहते है इसे मरना।
कलम घिसाई