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22 Sep 2024 · 1 min read

किसी को मारकर ठोकर ,उठे भी तो नहीं उठना।

किसी को मारकर ठोकर ,उठे भी तो नहीं उठना।
किसी का तोड़कर दिल , जिए भी तो क्या जीना।
रहे लिपटे सदा निज स्वार्थ में तो क्या मिलेगा जी,
मरे जो दूसरों के हित तो कहते है इसे मरना।

कलम घिसाई

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