किसी को घर नहीं
किसी को मिल जाता है महल तो किसी को घर नहीं देता,
ये कैसा इंसाफ है मेरे मौला? इसका कोई उत्तर नहीं देता।
जिन्हे नींद नहीं आती पड़े पड़े नर्म गद्दों पर,
जो थक के चूर हैं परिश्रम से उन्हे कोई बिस्तर नहीं देता।
ये कैसा हिसाब है जिसका पीढ़ियाँ कर रही हैं भुगतान,
ये क्या ज़माना है जो सबको सही अवसर नहीं देता।
तेरी दुनिया में लोग कितने भूखे और प्यासे हैं,
इनके प्यालों को कभी क्यों भर नहीं देता।
मुझे पूरा यकीन है तेरी ताकत, तेरी हस्ती पर,
तू क्यों सबको एक बराबर कर नहीं देता।