किसी के दिल में आना चाहता है
किसी के दिल में आना चाहता है
फ़क़त वो इक ठिकाना चाहता है
न होती झूट से हासिल बुलन्दी
वो क्यूँ सच को भुलाना चाहता है
कमी अपनी छिपाकर दूसरों की
वो कमियाँ क्यूँ गिनाना चाहता है
हंसी ओढ़े हुए झूटी है लब पर
गमों को वो छिपाना चाहता है
न जाने कब से बैठा है ज़मीं पर
किसी को क्या दिखाना चाहता है
समुन्दर इक निहाँ है उसके अन्दर
वो आँसू ये बताना चाहता है
बहुत ख़ामोश है ‘आनन्द’ कब से
न जाने क्या सुनाना चाहता है
~ डॉ आनन्द किशोर