किसी के दिल की बेचैनी
किसी के दिल की बेचैनी, किसी के दिल की बेताबी,
जाम जो है मोहब्बत का पिला दे मुझको भी साकी।
रकीबों की ये महफिल है, जरा सोचो जरा सम्भलो,
यहाँ है सारे दीवाने जो उसने जुल्फ लहरा दी।
कहूँ मै क्या भला उसको जो दिल को लूट बैठी है,
मै देखू गर कोई सपना तो आके नींद चुरा ली है।
वो कहती है कि मिलना तुम मगर मिलना जरा छुपके,
बताऊँ कैसे मै उसको मोहब्बत छुप नहीं सकती यही तो इसमे खामी है।
अरुण यादव “अरु”