किसी की यादों में जलती हुई हुईअग्निपरी
किसी की यादों में जलती हुई एक अग्निपरी
किसी की यादों में जलती हुई,
अग्निपरी कविता लिख रहा हूँ।
उसकी सूरत आँखों में समाई,
प्यार की रोशनी फैलाई।
दिल के कोने में जवाँ आग सी,
जलती हुई हर पल बदलती है रूही।
वो यादें, वो बातें, वो चाहतें,
जैसे जगमगाती हैं छातीं।
कविता की इस चिता में जलती,
उसकी यादों की बातें समेटती।
धुंधला हुआ जो मेरा मन,
धीरे-धीरे बढ़ाती लौ साथीं।
आग की जलती रोशनी जैसी,
वो यादें मेरी धड़कन सी।
जब भी याद आती है वो रातें,
जलती हुई अग्निपरी की यात्रा होती है फिर शुरू।
बुझती हुई आग के थपेड़े,
बिखरती हुई गर्मी के मौसम में।
बस एक याद की खाक रह जाती है,
जब तक रहेगी मेरी सांसें।
कार्तिक नितिन शर्मा