किसी कि चाहत
साहिब मेरे मन मे किसी की चाहत बस गई है
किसी की मुस्कुराने की आदत अच्छी लगती
उसका ही नाम हर पन्ने में लिखा जाता रहा,
मेरी कलम ऐसे ही किसी की इबादत करती रही
जिंदगी के चमन में बहार एक ही पल में छा गई
सोचा ना था, कि किसी की मोहब्बत यूं रंग लायेगी
उसने इस कदर एक पत्थर के बुत को, तराशा
हम भी निकले, एक सुंदर सी मूरत किसी की ।
सोचा था जिंदगी का ये सफर को तन्हा ही काट लेंगे
मगर है किसी की जरूरत महसूस होने लगी है
अब हम करें भी तो क्या करें वो मयखाने जा कर
किसी की उल्फत आंखों से पैमाने छलका देती है