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25 Feb 2019 · 1 min read

किसी का मन भर गया है खेलते खेलते

किसी का मन भर गया है खेलते खेलते
तंग आ गया आखिर मुझे झेलते झेलते

सोचा था बहुत लम्बा सफ़र होगा मेरा
मगर बहुत दूर आ गये टहलते टहलते

बदले के लिए,कर ली थी उनसे दुश्मनी
आखिर बच ही गया, बहकते बहकते

कोई भी निर्णय हुंकार से लेने न दिया
साँस फूलने लगा है लटकते लटकते

राही किसी का पीछा करता नहीं कभी
उनका भाव बढ़ गया मचलते मचलते

? रवि कुमार सैनी ‘राही’

1 Like · 334 Views
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