किसी और के खुदा बन गए है।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
दुआओं में जिनको मांगा था।
वही अब देखो बद्दुआ बन गए है।।
दिल जिनकी इबादत करता था।
वही किसी और के खुदा बन गए है।।
दरख्तो से सारे परिंदे क्या उड़ चले।
सारे बागवां खुद में तन्हा रह गए है।।
चाहतों का समंदर लिए बैठा हूं।
एक वह है हमको बेवफ़ा कह गए है।।
बंजर थी दिले जमीं इन्तजार था।
बरस के कहीं और के आसमां बन गए है।।
ये दिल नादां था जो एतबार कर बैठा।
इश्क करके हम उनसे बेजुबां बन गए है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ