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5 Dec 2016 · 1 min read

किसी और का सिन्दूर

कविता
किसी और का सिन्दूर

*अनिल शूर आज़ाद

बरसों के बाद/उस दिन
जब हम/मिले थे

अनायास तुम/थम गई थी
एकाएक मै/रुक गया था
मै/तुम्हारी ओर बढ़ा था
यंत्रवत तुम/इधर खिंची थी
हमें यों/सड़क के बीच देखकर
वाहनों के साथ-साथ
हवा भी/कुछ पलों के लिए
जैसे/ठहर सा गई थी

फिर सहसा/तुम पीछे पलटी थी
स्वयं मैं/चौंका था
लोगों को भी/जैसे
सांस में सांस/आई थी

सच कहना/अनामिके
तुम्हारी मांग में चमकता
किसी और का सिन्दूर/ही था न

जिसने/इतना कुछ
बदल दिया था..

(रचनाकाल : वर्ष 1992)

Language: Hindi
532 Views

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