किसान
प्रदत्त शब्द- किसान
दिनांक-21/4/18
दिन-शनिवार
नित रोप बीज कर्म, वसुधा पर,किस्मत से सु-आस संजोता हूँ।
रखुँ अकळामण उम्मीद धरा से,जिस हिये हल चुभोता हूँ।
जोत-जोत काया धरिणी की,कण-कण मैंने कर दिया कुंदन।
शाष्टांग-डण्डवत मुद्रा में, श्रमनिष्ठ हो मैं करता वंदन।
वातावरण सुनो, दिनकर ने था बना दिया लावे का बर्तन।
फिर भी अथक प्रयास से मेरे, हरित फसलें करतीं हैं नर्तन
अलि,अजाण ,अटपटुं ,अटकल लगाके,भरी दुपहरी खूब खुदाल चलाई।
फिर चाहे नभ दामिनि दमके,चाहे शीत लहर दुखदाई।
अलबत्त,अलोप,अडचण अतिथि सी,तंगी में आए, हाय!
बे-रुत मेघराज जब बरसे, तब नहीं होता कोई सहाय।
अकाल-आँधी या अविरल वर्षा की नीलम परवाह नहीं कर।
कृषक की भाँति कर्मशील बनकर, कर्म करे जा,स्व विश्वास मन धर।
नीलम शर्मा
सरलार्थ
अकळामण– विकलता, अजाण — अज्ञानी,अटकळ — अनुमान,अटपटुं — जटिल,अडचण — बाधा,अलबत्त — निःसंदेह,अली — सखी,अलोप — अदृश्य,