किसान
किसान उग्र कहाँ होता है ।
उसका तो सारा जहाँ होता है।
पसीने से खेत को सींचा।
बंजर और रेत को सींचा।
फसल नष्ट हो तो धुँआ होता है।
किसान उग्र कहाँ होता है ।
उसका तो सारा जहाँ होता है।
किसान फर्ज में सरकार कहाँ फर्ज में है।
सब कुछ गँवाकर किसान ही तो कर्ज में है
अन्नदाता यही है पर न नामो निशां होता है।
किसान उग्र कहाँ होता है ।
उसका तो सारा जहाँ होता है।
किसी की हानि न किया तनाव में।
जरा देखिए इनका हाल हर गाँव में।
कौन जाने कब जागता और सोता है।
किसान उग्र कहाँ होता है ।
उसका तो सारा जहाँ होता है।
-नमिक सिद्धार्थ