किसान
*********** किसान ***********
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न सवेर देखते और न ही शाम देखते,
किसान मेरे देश के सदा काम देखते।
गर्मी,सर्दी,वर्षा की परवाह नहीं करते,
दिन हो या रात न कभी आराम देखते।
फसलों को बच्चों की है भान्ति पालते,
धूप हो या छाँव न कभी विश्राम देखते।
मिट्टी में मिट्टी हो कर हैं सोना उगाते,
बात कोई भी खास न ही आम देखते।
बेशक कर्जों के सदा बोझ में है जीते,
विपदा हल्की या भारी सरेआम देखते।
आत्महत्या करने को हो जाते मजबूर,
जमीट जिंदा रखते न तामझाम देखते।
हलधर जिंदादिली की क्या मिशाल दें,
आई पर आ जाएं तो न ही दाम देखते।
किसान और जवान हैं जिंदाबाद रहते,
मनसीरत जीवन में न ही विराम देखते।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)