किसान
किसान
तपती धरा अम्बर मार्तण्ड प्रखर
मलिन हाथों आस का बीज धर
अश्रु सने स्वेद कणों से सींच कर
हौसलों का हल चलाता हलधर
कृषक के पसीने का परिणाम
लहलहाते खेत और खलिहान
न व्यर्थ होता उनका बलिदान
मिट्टी पहनती सोने का परिधान
फिर क्यों उत्पीड़न सहता किसान
क़िस्मत देखो जो उगाता धान
तरसता रहता मुट्ठी भर दाने को
तड़पता अपनी क्षुधा मिटाने को
अनथक परिश्रम व संघर्ष आमरण
पिसता क़र्ज़ कुपोषण और शोषण
नित्य मरता खेतिहर लाखों मरण
सियासी मोहरा न सहारा न शरण
रेखा
कोलकाता