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3 Dec 2020 · 1 min read

किसान

किसान

तपती धरा अम्बर मार्तण्ड प्रखर
मलिन हाथों आस का बीज धर
अश्रु सने स्वेद कणों से सींच कर
हौसलों का हल चलाता हलधर

कृषक के पसीने का परिणाम
लहलहाते खेत और खलिहान
न व्यर्थ होता उनका बलिदान
मिट्टी पहनती सोने का परिधान

फिर क्यों उत्पीड़न सहता किसान
क़िस्मत देखो जो उगाता धान
तरसता रहता मुट्ठी भर दाने को
तड़पता अपनी क्षुधा मिटाने को

अनथक परिश्रम व संघर्ष आमरण
पिसता क़र्ज़ कुपोषण और शोषण
नित्य मरता खेतिहर लाखों मरण
सियासी मोहरा न सहारा न शरण

रेखा
कोलकाता

Language: Hindi
5 Comments · 536 Views

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