किसान
देश का किसान बहुत बदहाल हैं
कर्ज में हैं डूबा कर्जदार बेहाल है
दिन रात करता बहुत परिश्रम है
समृद्ध है किसान मात्र यह भ्रम है
खेतों में उगाए धान्य का भंडार है
महरुम धान्य से स्वयं खेतिहर हैं
सारे जगत का होता पोषणहार हैं
रात भूखा सोए देश का किसान है
साहूकारों ने भी बनाया कर्जदार है
फसलें काबू करते,कृषक मजबूर है
बैंकों में गिरवीं रखी सारी जमीन हैं
स्वयं की जमीन पर बना मजदूर है
कर्ज यूँ का यूँ खत्म हो गई पीढियाँ
कर्जे की हाथों में लगी हुई हैं बेड़ियाँ
आत्महत्या करने को हुआ मजबूर है
यही हाल हर किसान यहाँ हुजर है
कीमतें बढ रही देश में हर वस्तु की
कब बढेंगी कीमतें खेतों में धान्य की
कब होगा भूमिपुत्र समृद्ध खुशहाल
कब झूमेगा किसान जो बदहाल है
भूमिपुत्र हो आज रहा हैरान परेशान है
हो रही हैं जवान बेटियाँ हाल बेहाल है
कभी कुटुम्ब कभी फसल रोग ग्रस्त है
सियासतदार तो ऐशोआराम में मस्त है
खून पसीने की यह मेहनत रंग लाएगी
किसानकी तंगहाली का रंज मिटाएगी
उस दिन होगा ही देश का पूर्ण विकास
जिस दिन होगा हलधर सुखी खुशहाल
सुनो हाकिम अन्नदाता की चीख पुकार
करते हैं विनती बदलो कृषि नीति सुधार
जिस दिन किसान छोड़ देगा कृषि काम
धरती पर आ जाओगे छोड़ एशोआराम
कहते ऊपर भगवान तो नीचे किसान है
फिर यहाँ काहे को दुखियारा किसान है
कोर्ट कचहरी कभी बीमारी का फंडा हैं
बैंककर्मियों कभी साहूकारों का डंडा हैं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत