किसान! वो भी गरीब
शीर्षक – किसान! वो भी गरीब
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राजस्थान
मो. 9001321438
चैत्र मास शुक्ल पक्ष का सूर्य,
प्रचंड तेज तप्त धरा का शौर्य।
कृषक पोषक, अन्न-धन-तन
क्षुब्द,मौन,व्याकुल चिंतित मन।
खेत-खलिहान उपज का समय
अंधड़ – वर्षा – सौदामिनी
लक – लक करके छिप जाती
उमड़-घुमड़ कर फिर आती।
पेट काटकर फसल जो पाली
सूख गई गेहूँ की बाली
आँखों में अश्रु,हाथ है खाली
मिल भी न पाती चाय की प्याली
उठी घटायें काली – काली!
नहीं देता फिर भी ईश को गाली
प्याज रोटी खाई,पत्नी ने जो घाली
मंजरी थी आम की डाली-डाली
किस्मत ने चालें जो चाली!
कड़ी मेहनत से पड़ी हाथ में छाली
बता भाग्य! कैसे बुनी ये जाली?
चोटे खाकर, हर बात है टाली
समय नहीं है बात करने को ठाली
अपनी ही मेहनत को,गेहूँ के साँचे में ढाली
खाकर मेरी मेहनत,लोग बजा रहे ताली
रूखी-सूखी,कभी वंचित रह जाती मेरी थाली
नहीं मिलती सुख की रोटी-दाली
मेरी मेहनत का सुख,बहता अमीरों की नाली।
गाय,भैंस,बकरी है हमने पाली
हमारे बाग-बगीचों के हम है माली
कड़ी धूप में शेष नहीं,चेहरे की लाली
कितना करने पर भी नाम धरा है हाली
युग-युग की जकड़ी है जंजीरें, आली!
गरीब किसान, गरीब और किसान
युग-युग से हम है उनके नारों की शान।
युग बदला,शासन बदला,बदल गई है सत्ता
कर्ज माफी का लालच दे,बनाते हमें जीत पत्ता।
कोई नहीं बता रहा हमको,क्या है हमारी खता
हर कोई रैली में एहसान अपने रहे है जता।
जोर नहीं है मेरा,कि मैं कोई रैली करूँ?
संसद के चोर लुटेरों की।
तीतर और बटोरों की
जमाने भर के आदमखोर
भीड़ है ये हरामखोर…!
करूँगा एक रैली मैं ऐसी
जन सैलाब पसरा होगा
फटे सूथने,मैले कपड़े
दिखा-दिखाकर, जोश भरूँगा
सुनो! ऐ हिन्दुस्तान की अवाम…!
मैं देता हूँ एक आवाज….
मैं यानी हम,अब गरीब और किसान
नहीं है,गरीब किसान भी नहीं है ?
मैं नया नाम देता हूँ आपकों…?
हे किसानों! आपके खेत-खलिहान
अब होंगे ‘अलका-नगरी’
आप हो ‘धरतीपुत्र कुबेर’
गरीबों! अब आप गरीब के नाम से नहीं
अब आप ‘प्रजापति’ कहलाओं
गरीब किसानों आपको मैं ‘प्रजापति-कुबेर’ कहूँगा।
संसद दिल्ली में नहीं, आपकी देहरी पर होगी
दिल्ली दूर नहीं होगी,दूर दिल्ली होगी।
फैसला मंत्रीमंडल नहीं, खलिहान करेंगे!
आपको हानि,मंडी में दलाली नहीं होगी
लाभ मंडी में भटकेगा नहीं
मेहनत का लाभ दलाल नहीं लेगा
धन्ना सेठों की चर्बी कम होगी
आपकी चर्म उनका मोटापा हो गई
पर अब नहीं…! बहुत हुआ…!
पाँच आदमी का खाने वाले अकेले सेठ को
गति मिलेगी उनको,पूर्वजों से ठेठ को।
कर दो घोषणा, ऐ प्रजापति कुबेरों!
धन वितरण सम होगा
थोड़ा अर्थ कम होगा
मैं कालपुरूष, यम तू न होगा
शिव, शिव है,शिव होगा
‘ज्ञानीचोर ब्रह्मज्ञानी’ का शासन होगा
वही कालपुरूष का आसन होगा।