किसान की रात
धरा ने ओढ़ रखी,
हरी भरी चुनरिया ।
मौसम हुआ सर्द ,
बह रही पुरवइया ।।
पूस की ठंडी रात,
बहुत लंबी होती ।
करवटे यूँ बदलते,
रात नही बीतती ।।
किसान बेबस है,
करें वो रखवाली ।
ठिठुर ठिठुर कर,
पाने खुशहाली ।।
मौसम की मार ,
लाला का ब्याज ।
करते नही रहम,
चाहे बिगड़े काम ।।
फसल मेहनत मांगे,
बिना श्रम कुछ नहीं ।
दिन रात करो काम ,
खलिहान भराते सही ।।