सांस
सांस
सांस सांस सुमिरन करे,रटे राम का नाम।
सांस सुखद संताप हर, मौज लगे ना दाम।।
सांस सखी हर जीव की,सांस सांच का नाम।
सांस बिना जड़ जिंदगी, सांस सहित हर काम।।
सांस मिली संसार को,गतिमय गति हित जान।
सांस एक उपहार है, सकल सृष्टि गतिमान।।
सांस कर्म की संपत्ति,सांस जगत कल्याण।
सांसें खर्ची लोक हित, सुखद हरे हर प्राण।।
सांस साध साधु हुए,साधे संत समाज।
सांस जगत में झोंक दी,करे मनुजता नाज।।
सांस खजाना घट रहा,परहित सधा न एक।
जगती हित जीए मरे, समझो मानुष नेक।।
सांस घुटे मन ऊचटे, बढ़े प्रदूषण खूब।
बहुमंजिला भौन में,नकली बिछती दूब।।
सांस समय के साथ है,सांस समय का अंग।
सांस सतत चलती रहे,जमा रहे हर रंग।।
सांस कुदरती खेत है,जो बोए वो काट।
हरीभरी धरती रहे,बना रहेगा ठाट।।
सांस मिली सौगात में,मालिक का उपकार।
प्राणी तू मालिक नहीं,भोग फकत उपहार।।
सांस मिली तो सांस दे,लगा वृक्ष दस पांच!
मौज भूलना है नहीं,कभी सांच को आंच।।
विमला महरिया “मौज”