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22 Feb 2024 · 1 min read

किसलिए

चेहरे पर ये इताब किसलिए |
ज़िन्दगी हमसे हिसाब किसलिए |

भोर की प्यारी चमक सी तू दिखे,
शाम तक गम का ख़िताब किसलिए |

पूछतें हाल ओ ख़बर अमीर का,
दूरी मुफ़लिस से ज़नाब किसलिए |

पेट भरती है फसल किसान की,
उसकी रोटी तक ख़राब किसलिए |

आसमाँ को ताकता वो मौन हो,
बाद मिहनत के अज़ाब किसलिए |

औरतें जलती रहीं दहेज में,
पालते रौनक का ख़्वाब किसलिए |

गम के हैं “अरविन्द” सब गुलाम फिर,
चंद खुशियों में नवाब किसलिए |

✍️अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०

1 Like · 95 Views
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