किसलिए
चेहरे पर ये इताब किसलिए |
ज़िन्दगी हमसे हिसाब किसलिए |
भोर की प्यारी चमक सी तू दिखे,
शाम तक गम का ख़िताब किसलिए |
पूछतें हाल ओ ख़बर अमीर का,
दूरी मुफ़लिस से ज़नाब किसलिए |
पेट भरती है फसल किसान की,
उसकी रोटी तक ख़राब किसलिए |
आसमाँ को ताकता वो मौन हो,
बाद मिहनत के अज़ाब किसलिए |
औरतें जलती रहीं दहेज में,
पालते रौनक का ख़्वाब किसलिए |
गम के हैं “अरविन्द” सब गुलाम फिर,
चंद खुशियों में नवाब किसलिए |
✍️अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०