किसने दिया ये हक था; तय कीमत पे हो आजादी ?
आजाद हम तभी तक; आजाद तुम तभी तक
हम हैं हमारे वश में हाँ तुम हो तुम्हारे वश में।
??
अगर है याद तुमको; अगर है याद हमको
वो जहर की गलियां; जहाँ कुदी हमारी अस्मत
चीखा वतन दुबारा; साहस को मिटते देखा
वो बलिदानियों की बेबा; दुधमुँहे चिराग थे तब
कुओं में तैरा जीवन; अंत मजबूर हो बढ़ा तब
कहा
लो मौत हाँ समर्पण
लो मौत हाँ समर्पण।
अगर है याद तुमको
वो भारत का ही अधर था
काँपा था पौरुष जबजब
वो रेल की बजती सीटी
आबरू से सनी पटरियाँ
कल तक जो सिर्फ थी बेटी
आजादी को ललायित
पूजा में राम हों या नमाजों में लिपटी शामें
बाँटा उनको ऐसे
खंजर चलाके छाती
किसने दिया ये हक था; तय कीमत पे हो आजादी ?
शर्म न आती तुमको
जय करते हो तुम किनकी ?
बलिदानियों की नब्ज में; हर वो एक था बस
जिनके लहु में शामिल; ओज बनके दहकती रही आजादी
है नहीं यकीं जो तुमको; पुछो न तिरंगे से तुम!
खौला था क्या नहीं वो जब तय हुई थी कीमत
जश्न में हँसते-हँसते जब बँट गई थी थाली
??
भूमि नहीं थी वो बस; पुरखों का राग जिसमें
कल तक था दौड़ा जबजब ; धैर्य को थामे बचपन
उगेगा ईकदिन सुरज; कहता था चाँद चिलमन!
?
कहता था चाँद चिलमन!
चढ़ रहा है देखो फाँसी; कहीं जिद्द में अहिंसा की लाठी
फिर भी न हारा कोई तब; हृदय कहता रहा आजादी
कहता रहा आजादी
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ये इंतज़ार जो मिला था
कीमत भी क्या लगाई
??
दे दिया ये क्या उनको
बन बैठे क्युँ कसाई
बन बैठे क्युँ कसाई
आजाद हम………
वंदेमातरम् ?
©दामिनी नारायण सिंह ?️ ⏳