किसकी हार ,किसकी जीत !
कुछ तुम समझा ना पाए ए दोस्त ! ,
और कुछ उन्होंने समझने ही न दिया।
चाल तो काम आ गई उस दुश्मन की ,
जिसे उन्होंने अपना यार समझ लिया।
जिसे भ्रम में इन्होंने अपनी जीत समझा ,
वो जीत नहीं , दुर्भाग्य को अपना लिया।
अब यह आने वक्त बताएगा इन मूर्खों को ,
कुटिल बुद्धि के फेर में इन्होंने क्या खो दिया।
तुमने इनसे क्षमा मांगी ,यह तुम्हारा बड़प्पन है ,
मगर इन्होंने जरूर अपना सम्मान खो दिया।