“किसकी पराजय?”
“किसकी पराजय?”
चली उम्मीद की आँधी जना जब पुत्र माता ने
बजी शहनाइयाँ घर में दिया कुलदीप दाता ने।
सजा अरमान की डोली झुलाया लाल को पलना
पिता ने थाम कर अँगुली सिखाया पुत्र को चलना।
जगे माँ-बाप रातों को हिलाते गोद में बेटा
सुना लोरी बलैंयाँ लीं ललन जब बाँह में लेटा।
बिठा कर छाँव आँचल की पसीना प्रीत से पोंछा
नहीं मालूम था उस दिन निकल जाएगा तू ओछा।
उठा काँधे घुमा तुझको खिलाया चाँद सा मुखड़ा
सहा हर दर्द दुनिया का नहीं तुझसे कहा दुखड़ा।
छिपा कर हाथ के छाले किया श्रमदान तन- मन से
गँवाया चैन जीवन का किया पोषित नेह धन से।
तकूँ मैं आज मुख तेरा तरसता साथ को तेरे
अहम माथे चढ़ा कर तू झटकता हाथ को मेरे।
कलेजा फूट कर रोया हुआ लाचार अंगों से
नहीं सोचा करेगा तू मिरा अपमान दंगों से।
कहूँगा क्या ज़माने से सितम किसने किया मुझ पर?
हँसेगी परवरिश मुझ पर लगी जो तोहमत तुझ पर।
छिपा कर ज़ख्म अपनों के बता कैसे सुकूँ पाऊँ?
लगे अब प्राण लूँ अपने कफ़न ओढ़े चला जाऊँ।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-“साहित्य धरोहर”
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)