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31 May 2024 · 1 min read

किराये का घर

कहने को तो मेरा भी
एक घर है
पर वो किराये का घर
या बेघर हैं

महीना आते आते किराया सर
पर चढ़ जाता है
एक दिन किराया चढ़ा नहीं
मालिक घर चला आता है

ये घर बड़ा प्यारा है
दो कमरा , चौखट बड़ा न्यारा है
पर अफसोस इस बात का है
ये स्वपन ने ही मुझे
स्वीकारा है

ऐसे तो कितने
घर देखे
कही महीना कही साल तो
कही कुछ और साल बीते

कितनी यादें , कितनी राते
जुड़ी रही होंगी
पर उफ़ ये किराया का घर
एक दिन हो जाता बेघर

मन मचलता है
हृदय भी जलता है
जब किसी घर पुन:
किराये का दीपक जलता है

ये असीम दुख मैं
ही समझ पाता हू
क्षण भर मुस्कारता
क्षण पर खुद को बिलखता पाता हू

किसी दिन अथिति भी
आ जाते है
चंद मिठाई के साथ
चौसठ बाते सुना जाते हैं

यहां पलंग,अलमारी
आवश्यक वस्तुओं का ही
संग्रहखाना होता है आखिरकार
किराए का घर छोड़ जाना होता है

नया कुछ बसने से पूर्व
नव खयाल आते है
फिर ढोना पड़ेगा , गुथना पड़ेगा
और न जाने कितने खयाल आते है

उफ ये किराया का घर …..
-कविराग

Language: Hindi
19 Views
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