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25 Jul 2019 · 7 min read

किराया

किराया —————

‘आंटी, मैं मध्यप्रदेश से आई हूं’ स्नेहा ने पी-जी की मालकिन के पूछने पर बताया। स्नेहा कुशाग्र बुद्धि, पढ़ने में होशियार और जिले में बहुत अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण हुई थी जिसके आधार पर उसे उत्तरी दिल्ली विश्वविद्यालय के एक नामी कालेज में प्रवेश मिल गया था। ‘कौन से कालेज में दाखिला मिला है और क्या कोर्स पढ़ोगी’ मालकिन ने अगला सवाल किया। ‘मुझे अमुक कालेज में दाखिला मिला है और मैं गणित की पढ़ाई करूंगी’ स्नेहा ने जवाब दिया। ‘तीन साल का कोर्स होगा?’ मालकिन ने फिर पूछा। ‘जी हां’ स्नेहा ने जवाब दिया।

‘अपने सर्टिफिकेट्स, आधार कार्ड, वोटर कार्ड और कालेज की फीस की स्लिप दिखाओ’ मालकिन ने कहा। ‘जी’ स्नेहा ने कहा और एक एक करके सभी कागजात दिखा दिये। ‘तुम्हारे परिवार से तुम्हारे साथ यहां कौन आया है?’ अगला सवाल था। ‘मेरे पिताजी साथ में आये हैं और वह नीचे खड़े हैं’ स्नेहा ने जवाब दिया। ‘अच्छा, अच्छा … तुम्हें मालूम है यहां कमरा लेने का किराया कितना है?’ मालकिन ने आगे पूछा। ‘नहीं आंटी, मैं तो बोर्ड देखकर चली आई’ स्नेहा ने जवाब दिया। ‘क्या करते हैं तुम्हारे पिताजी’ मालकिन ने पूछा। ‘वह मध्यप्रदेश के एक सरकारी कार्यालय में क्लर्क हैं’ स्नेहा ने सहजता से बताया। ‘क्लर्क!’ मालकिन ने चेहरे पर प्रश्नचिह्न उभरा। ‘कितनी तनख्वाह है, तुम्हारे पिताजी की’ मालकिन ने पूछा।

स्नेहा अभी भी धैर्य रखे हुए थी क्योंकि उसे कालेज के नजदीक ही रहने को जगह चाहिए थी। कालेज के होस्टल में उसे जगह नहीं मिल पाई थी। ‘जी, पचास हजार रुपये महीने के लगभग है’ स्नेहा ने बताया। मालकिन ने यह सुनकर नाक-भौं सिकोड़ी पर फिर कहा ‘हमारे यहां एक कमरे का किराया पन्द्रह हजार रुपये महीना है।’ ‘पन्द्रह हजार!!!’ स्नेहा के मुख से निकला। ‘ज्यादा थोड़े ही है, पीजी संभालना कोई आसान बात है और फिर साफ-सुथरे बैडिंग, रोज खाने पीने की सुविधा, टीवी, इन्टरनेट, ठंडा पानी, गरम पानी, लांड्री, वाईफाई, सुरक्षा के लिए बाहर गार्ड और न जाने क्या क्या। सबके अलावा बाहर कमरों वाली बिल्डिंग की मरम्मत, पेंट पालिश, हाउस टैक्स, गार्ड की तनख्वाह, कुल मिलाकर इतना खर्चा हो जाता है कि यह समझो इसमें कोई कमाई नहीं है, और इधर आओ, देखो, हर कमरे में खिड़की है, ताजी हवा आती है, एसी की व्यवस्था भी है। पन्द्रह हजार कोई ज्यादा नहीं हैं और फिर मुझे मेरे तीन स्कूल जाने वाले बच्चों को भी पालना है’ मालकिन ने समझाया।

अठानवे प्रतिशत और गणित में पूरे 100 अंक लाने वाली स्नेहा शिथिल पड़ गई थी ‘कुछ कम हो सकेगा।’ ‘नहीं, यहां तुम मना करोगी तो लेने वालों की लाइन लगी है’ मालकिन ने कहा। स्नेहा दुविधा में थी, कालेज इस भवन से पास था जिससे आने जाने का खर्चा भी बच जाता। ‘आंटी, मैं थोड़ी देर में आई, नीचे पापा खड़े हैं उनसे बात कर लूं, इसके अलावा तो कोई खर्चा नहीं है’ स्नेहा ने पूछा। ‘नहीं’ कहकर मालकिन अन्दर ही अन्दर खुश हुई थी।

‘पापा!’ स्नेहा ने पापा को पुकारा जो बिल्डिंग के बाहर बाग की दीवार पर बैठे सोचमग्न थे। ‘हां बेटा’ पापा ने कहा। ‘क्या सोच रहे हो’ स्नेहा ने पूछा। ‘कुछ नहीं, यूं ही बस यहां का वातावरण देख रहा था’ पापा ने जवाब दिया पर पापा के मन में क्या है स्नेहा ने पढ़ लिया था। ‘आप फिक्र मत करो, मैं बहुत अच्छे से पढ़ंूगी और आपका नाम रोशन करूंगी’ स्नेहा ने हिम्मत बंधाते हुए कहा। ‘कमरे की बात हो गई’ पापा ने पूछा। ‘हां पापा, बात हो गई है’ स्नेहा ने कहा। ‘मिल जायेगा’ पापा ने कहा। ‘हां पापा’ स्नेहा ने कहा। ‘कितना किराया देना पड़ेगा’ पापा ने मुख्य प्रश्न किया। ‘वो पापा …. तुम चिन्ता मत करो … सब हो जायेगा’ स्नेहा ने कहा। ‘सब हो जायेगा, कैसे हो जायेगा, कितना किराया है, बता तो सही’ पापा ने पूछा।

‘पापा, साफ-सुथरे बैडिंग, रोज खाने पीने की सुविधा, टीवी, इन्टरनेट, ठंडा पानी, गरम पानी, लांड्री, वाईफाई, सुरक्षा के लिए बाहर गार्ड और न जाने क्या क्या है, वह भी सिर्फ पांच सौ रुपये रोजाना में’ स्नेहा ने भार को हलका करने का प्रयास किया। ‘पांच सौ रुपये रोज!!!’ पापा परेशान हो उठे। ‘ज्यादा कैसे है पापा, कहीं खाने पीने जाओ तो दो-तीन सौ रुपये तो वैसे ही लग जाते हैं और फिर यहां इतनी सारी सुविधाएं और फिर तीन साल की तो बात है, फिर मैं टीचर बनकर आपके सपनों को पूरा करूंगी’ स्नेहा ने समझाने की कोशिश की।

‘यहां कोई धर्मशाला नहीं है जहां पचास-सौ रुपये रोज से काम हो जाये’ पापा ने कहा तो स्नेहा उदास सी हो गई। ‘अरे मैं तो मजाक कर रहा था, चल कमरा ले लेते हैं और फिर तेरे कालेज के पास ही तो है’ पापा ने बहुत मुश्किल से अपने चेहरे पर एक आवरण चढ़ाया था। ‘आंटी, लीजिए पन्द्रह हजार रुपये एक महीने के, अगला महीना शुरू होने से पहले पापा मुझे भेज दिया करेंगे, आपको कोई परेशानी नहीं होगी’ स्नेहा ने कहा। ‘मुझे किराये के साथ-साथ तीन महीने का एडवांस भी चाहिए’ मालकिन ने कहा। ‘एडवांस…’ स्नेहा और उसके पापा ने एकसाथ कहा। ‘इतना तो अभी नहीं कर पायेंगे’ उदास स्वर में कहते हुए स्नेहा और उसके पापा वापिस मुड़़ते हुए चल पड़े।

‘मम्मी, मम्मी, …’ वंशिका ने आवाज दी जो मालकिन की बेटी थी और नौंवी क्लास में पढ़ती थी। ‘क्या हुआ, क्यों चिल्ला रही है’ खीज कर मालकिन बोली। वंशिका एकदम सहम कर बोली ‘मम्मी, मैथ्स में मैं फिर फेल हो गई हूं, कितनी बार आपसे कहा है कि मुझे मैथ्स समझ में नहीं आ रहा, मुझे ट्यूशन लगवा दो, अगले साल दसवीं की पढ़ाई है, कैसे होगा?’ ‘आग लगे ऐसे मुश्किल सबजेक्ट को, तेरी टीचर ठीक से नहीं पढ़ाती क्या’ मालकिन बोली ‘और फिर ट्यूशन पढ़ाने वाला कोई सस्ते में थोड़े मिल जाता है, अच्छा पढ़ाने वाला तो ज्यादा पैसे ही मांगेगा’ मालकिन ने कहा। ‘मम्मी, मम्मी, मेरी सहेली के यहां एक ट्यूशन पढ़ाने वाले सर आते हैं जो गु्रप में पढ़ाने के सिर्फ दस हजार रुपये महीना लेते हैं, और अकेले पढ़ाने के पन्द्रह हजार रुपये लेते हैं, पूरा एक घंटा रोज पढ़ाते हैं, मेरी सहेली के बहुत अच्छे नम्बर आते हैं।

‘दस हजार! उसे दस हजार की कीमत भी मालूम है क्या और अकेले के पन्द्रह हजार, क्या जमाना आ गया है, बच्चों का जरा भी ख्याल नहीं’ मालकिन बोली। ‘क्यों नहीं पता होगी, मैथ्स के टीचर हैं और फिर उनके पढ़ाने से अच्छे नम्बर भी तो आते हैं’ वंशिका ने कहा। ‘गु्रप में तो मैं तुझे नहीं भेजूंगी, अकेली ट्यूशन लगवाऊंगी, तेरे मैथ्स के सर से बात करूंगी, अगर कुछ कम कर दें’ मालकिन ने कहा। ‘नहीं मम्मी, वो बिल्कुल कम नहीं करते, कहते हैं जहां रह रहे हैं वहां का किराया भी देना पड़ता है और फिर उनके पास अकेले पढ़ाने का टाइम कुछ ही बच्चों के लिए रह गया है, फिर उनके पास टाइम नहीं बचेगा, आप जल्दी बात करो’ वंशिका ने कहा। ‘बेटी, पन्द्रह हजार महीने के कहां से लाऊं’ मालकिन ने कहा। ‘क्यों मम्मी, आपकी तो बहुत कमाई है, एक ही कमरे के किराये से आपको पन्द्रह हजार मिल जाते हैं’ वंशिका ने कहा।

‘एक मिनट रुक’ कहती हुई मालकिन खिड़की की ओर भागी और नीचे देखा तो देखकर जैसे उसे झटका लगा। नीचे बाग की दीवार का सहारा लेकर खड़े हुए थे स्नेहा और उसके पापा और दोनों के हाथ में अपना-अपना रुमाल था जिससे वे बार बार अपनी आंखें पोंछ रहे थे क्योंकि उनकी होशियार बेटी आज पैसे की तंगी के कारण वह कमरा नहीं ले पाई थी। ‘वंशिका, एक मिनट इधर आ’ मालकिन ने कहा। ‘आई, क्या है मम्मी’ वंशिका ने पूछा। ‘वो देख नीचे एक आदमी और एक लड़की खड़ी है, भाग कर जा, उन्हंे बुला ला’ मालकिन ने कहा। ‘कौन हैं वो, मम्मी’ वंशिका ने कहा। ‘सवाल मत पूछ, जल्दी जा, कहीं वो निकल न जाएं’ मालकिन ने कहा। ‘अच्छा मम्मी’ कहती हुई वंशिका नीचे चली गई।

‘अंकल … दीदी … वो देखो, आपको मेरी मम्मी बुला रही हैं’ वंशिका ने स्नेहा और उसके पापा से कहा। दोनों ने खिड़की में देखा तो मालकिन उन्हें ऊपर आने का संकेत कर रही थी। दोनों वंशिका के साथ चल पड़े। ‘तुम्हारे गणित में पूरे नम्बर आये थे!’ मालकिन ने पूछा। ‘जी, आंटी’ स्नेहा ने जवाब दिया। ‘यह मेरी बेटी वंशिका है, गणित में बहुत कमजोर है, नौवीं में पढ़ती है, फेल हो गई है, तुम इसे गणित पढ़ा दोगी’ मालकिन ने कहा। ‘हां आंटी, मुझे तो पढ़ना-पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है’ स्नेहा ने कहना जारी रखा ‘मैं इसे रोजाना एक-डेढ़ घंटा पढ़ा दूंगी और फिर यह भी मेरे जैसे पूरे नम्बर लेकर आयेगी।’

‘कब से पढ़ा सकती हो?’ मालकिन ने पूछा। ‘मैं कल से ही आ जाऊंगी’ स्नेहा ने कहा। ‘हमें अभी नीचे एक रिक्शे वाले ने बताया है कि यहां से कुछ दूर एक बस्ती में सस्ता सा कमरा मिल जायेगा, वह भी डेढ़ हजार रुपये महीने किराये में, उसमें स्नेहा रह लेगी’ स्नेहा के पापा ने कहा। ‘तुम वहां रहोगी! वहां कोई सुविधा नहीं मिलेगी’ मालकिन ने कहा जो यह तरकीब लड़ाने में लगी हुई थी कि स्नेहा वंशिका के लिए सस्ती ट्यूशन पढ़ा देगी। इसलिए हिसाब-किताब लगाने और सौदेबाजी करने से पहले उसने स्नेहा से पूछा ‘तुम वंशिका को पढ़ाओगी, ठीक है, पर यह बताओ तुम फीस कितनी लोगी’ मालकिन ने स्पष्ट किया।

‘फीस! कैसी फीस! मैं वंशिका से कोई फीस नहीं लूंगी’ स्नेहा ने कहा। ‘क्या, तुम उसे पढ़ाने की कोई फीस नहीं लोगी!’ मालकिन ने कहा। ‘नहीं आंटी, वंशिका मेरी छोटी बहन जैसी है, भला मैं उससे फीस कैसे ले सकती हूं’ स्नेहा ने कहा तो पत्थर-दिल मालकिन की कड़क आंखों में नमी आ गई थी। ‘बेटी, मुझे माफ करना, मैं धन के लालच में तुम्हारी जरूरत नहीं समझ पाई पर तुमने वंशिका को पढ़ाने की कोई फीस नहीं मांगी, मैं बहुत शर्मिन्दा हूं’ मालकिन ने कहना जारी रखा ‘और तुम यहीं रहोगी मेरी बेटी के समान और मुझे तुमसे कोई किराया नहीं चाहिए’। यह कहते हुए मालकिन का गला रुंध गया था। ‘बेटी, आज तुमने मुझे एक बहुत बड़ी सीख दी है। मैं वायदा करती हूं कि तुम्हारे जैसा कोई विद्यार्थी कमरा लेने आयेगा तो मैं उससे किराया नहीं लूंगी’ कहती हुई मालकिन कुर्सी पर निढाल होकर बैठ गई। उसमें एक बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया था। स्नेहा और उसके पापा के चेहरे पर भी एक मुस्कान सी आ गई थी और वंशिका कह रही थी ‘दीदी, अगले महीने मेरी अर्धवार्षिक परीक्षाएं हैं, मुझे अच्छे से मैथ्स समझा देना।’ ‘वंशिका, अब तुम चिन्ता मत करो, तुम्हारे भी पूरे नम्बर आयेंगे’ कहते हुए स्नेहा ने देखा तो मालकिन के चेहरे पर भी उसकी अपनी मां की भांति आत्मिक शांति की मुस्कान छा गई थी।

Language: Hindi
1 Comment · 237 Views
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