किया तुमने भी है कल रतजगा क्या ?
किया तुमने भी है कल रतजगा क्या
तुम्हें भी इश्क़ हमसे हो गया क्या
तुम्हें ही देखना चाहे निगाहें
इजाज़त देगा मेरा आइना क्या
मिरा तू मुद्द’आ तू मस’अला थी
बिछा लेता तुझे तो ओढ़ता क्या
यहाँ जिसको भी देखो ज़ोम में है
हमारे शह्र को आखिर हुआ क्या
मिरे अतराफ़ में तेरी सदा थी
तुझे दैरो-हरम में ढूंढता क्या
है तेरे ज़हन में तर्के-तअल’लुक़
तुझे फिर हमसा कोई मिल गया क्या
भटकना जब मेरी क़िस्मत में शामिल
पता सहराओं का फिर पूछना क्या
मैं उसके साथ उड़ता जा रहा था
मिरे पीछे थी वो बहकी हवा क्या
ज़माने पर भरोसा कर लिया है
‘नज़र’ तू हो गया है बावला क्या
नज़ीर नज़र