किया कभी अपमान अगर दरबारों ने।
ग़ज़ल
22…..22…..22…..22…..22….2
किया कभी अपमान अगर दरबारों ने।
शीश झुकाया ज्ञान तर्क़ से ऋषियों ने।
हथियारों से घातक हो जब कलम चली,
झुका लिया सर खून सनी तलवारों ने।
बीच समंदर में ही नाविक डूब गए,
धोखा जब भी दिया उन्हें पतवारों ने।
भूख गरीबी महगाई से क्या लेना,
कुर्सी कुर्सी खेला है सरकारों ने।
भूखे प्यासे मर जाते फुटपाथों पर,
क्या जाने क्या त्याग किया मज़दूरों ने।
हिंदू मुस्लिम दंगों में ये देश जले,
कोशिश पूरी की है कुछ गद्दारों ने।
प्रेमी दुनियां दुश्मन बनकर देख रही,
काम बिगाड़ा है सारा हथियारों ने।
…….✍️ प्रेमी